सोचती हूँ ,
कल जब मैं नहीं रहूँगी...
उलझे पड़े रहेंगे चादर ,
यहाँ वहाँ बिखरे होंगे सामान..
घर भले ही बिखरा हो ,
परिवार बिखरने मत देना...
स्नेह- डोर में बंधे रहना...
रोज सफाई न कर पाओ ,
आँगन में रंगोली न बनाओ..
पर पौधों को पानी देते रहना ,
फूलों को कुम्हलाने मत देना..
रात को थकहार कर आओगे ,
ढूंढोगे पर मुझे न पाओगे...
मन को उदास मत करना ,
अपनी मुस्कान में मुझे महसूसना..
घूम आना किसी ऐतिहासिक जगह ,
पढ़ना पत्थरों पर लिखी इबारतें..
देखना इमारतों की नक्काशियाँ ,
वहीं कहीं होऊँगी आस - पास
अपनी आँखों में ,
मेरे ख्वाब मुकम्मल करना..
उदास मत होना...
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Wednesday, 26 December 2018
कल जब मैं नहीं रहूँगी 2
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