अंतिम विदाई
दुश्मनों के आगे शीश नहीं झुकाया है ,
माँ की कोख को कभी नहीं लजाया है ,
जरा मैं उसकी आरती उतार लूँ...
बेटा तिरंगे में सज कर आया है ,
जरा ठहरो ! उसे जी भर निहार लूँ...
सौ - सौ मनौतियाँ मानकर ,
ईश्वर से उसे माँगा था..
बाँधे थे कई ताबीज ,
काजल का टीका लगाया था..
सुशोभित उस वीर की ,
आज फिर नजरें उतार लूँ...
बेटा तिरंगे में सजकर आया है ,
जरा ठहरो ! उसे जी भर निहार लूँ ..।
खेल कर बाहर से ,
जब भी घर आता था...
माँ तेरी गोद भली है ,
कह मुझसे लिपट जाता था...
चिरनिद्रा में सो गया वह ,
जरा उसकी अलकें सँवार लूँ...
बेटा तिरंगे में सजकर आया है ,
जरा ठहरो ! उसे जी भर निहार लूँ..
उंगली मेरी थाम ,
उसने चलना सीखा था...
संघर्ष ,परिश्रम कर ,
जीवन जीना सीखा था..
अंतिम सफर पर निकला है ,
यह सुन्दर छवि सीने में उतार लूँ....
बेटा तिरंगे में सजकर आया है ,
जरा ठहरो! उसे जी भर निहार लूँ...
मेरे लाल पर तन - मन -धन वार दूँ...
स्वरचित --- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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