Sunday, 16 December 2018

अंतिम विदाई

अंतिम विदाई

दुश्मनों के आगे शीश नहीं झुकाया है ,
माँ की कोख को कभी नहीं लजाया है ,
जरा  मैं उसकी  आरती उतार लूँ...
बेटा तिरंगे में सज कर आया है ,
जरा ठहरो ! उसे जी भर  निहार लूँ...
सौ - सौ मनौतियाँ मानकर ,
ईश्वर से  उसे माँगा था..
बाँधे थे कई ताबीज ,
काजल का टीका लगाया था.. 
सुशोभित उस वीर की ,
आज फिर नजरें उतार लूँ...
बेटा तिरंगे में सजकर आया है ,
जरा ठहरो ! उसे जी भर निहार लूँ ..।
खेल कर बाहर से ,
जब भी घर आता था...
माँ तेरी गोद भली है ,
कह मुझसे लिपट जाता था...
चिरनिद्रा में सो गया  वह ,
जरा उसकी अलकें सँवार लूँ...
बेटा तिरंगे में सजकर आया है ,
जरा ठहरो ! उसे जी भर निहार लूँ..
उंगली मेरी थाम ,
उसने चलना सीखा था...
संघर्ष ,परिश्रम  कर ,
जीवन जीना सीखा था..
अंतिम सफर पर निकला है  ,
यह सुन्दर छवि सीने में उतार लूँ....
बेटा तिरंगे में सजकर आया है ,
जरा ठहरो! उसे जी भर निहार लूँ...
मेरे लाल पर तन - मन -धन  वार दूँ...

स्वरचित --- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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