लप्रेक ( लघु प्रेम कथा )
अदालत द्वारा दी गई एक महीने की मोहलत का आखिरी दिन...उन्होंने प्रेम विवाह किया था...उसके बाद परिवारों की दखलंदाजी और गलतफहमियों के कारण दोनों के बीच दूरियाँ आती गई । रिश्ते इतने उलझ गए थे कि सुलझाते - सुलझाते बहुत देर हो गई ।एक - दूसरे पर तोहमत लगाते थक गए थे वे पर दिलों में झाँकने की कोशिश नहीं कर पाये । आज चलते - चलते एक - दूसरे की आँखों में देख रहे थे वे अपना प्यार भरा अतीत...मीठी यादों ने वर्तमान की सारी कड़वाहटें भुला दी ...दिलों पर जमी गलतफहमियों , शिकायतों की गर्द आँसुओं से धुल चुकी थी... फैसला हो गया था , लड़ेंगे , झगड़ेंगे पर साथ रहेंगे...प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए शब्दों की जरूरत नहीं थी...
गहराइयों ने आँखों की , दिल का हाल कह दिया...
लब खामोश रहे ,ढलते आँसुओं ने जज्बात कह दिया...
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Saturday, 8 December 2018
फैसला ( लघुकथा )
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