Tuesday, 29 January 2019

देह आपका सावधानी आपकी

एक माँ और पत्नी के रूप में महिलाओं की ढेर सारी जिम्मेदारियां होती हैं  । घर में सबका ख्याल रखते - रखते वे अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो जाती हैं
अक्सर मैं  उन्हें यह कहते सुनती हूँ कि उन्हें चक्कर आते हैं , कई बार उठते वक्त  सिर घूम जाता है  । कमजोरी और रक्ताल्पता की समस्या होती है पर वे इसे नजरअंदाज करते रहते हैं  । रमा कमजोरी लगने के कारण बुआ की लड़की की शादी में नहीं जा पाई थी तो रिश्तेदारों की टिप्पणियों थी ऐसी भी क्या बीमारी है कि शादी में नहीं आई  । जब उसका उठना बैठना मुश्किल हो गया तब उसने ब्लड टेस्ट कराया तो उसका हीमोग्लोबिन पाँच निकला तब सबको स्थिति की गम्भीरता का एहसास हुआ  और उसके आराम का इंतजाम हुआ नहीं तो उसी हालत में वह घर के सारे काम निपटा रही थीं ।  माहवारी के वक्त अधिक रक्तस्राव होने पर रमा को स्वयं सावधान हो जाना था पर उसने  अपने प्रति लापरवाही बरती और पीड़ा झेलती रही । कई महिलाएं का  म करते -करते अपने नाश्ते के समय को स्किप कर देती हैं जबकि नाश्ता हमारे आहार का प्रमुख हिस्सा है । पानी पीने के लिए भी महिलाएं ध्यान नहीं देती हैं जबकि वो जानती हैं कि रोज लगभग आठ गिलास पानी पीना सेहत के लिए जरूरी है । काम तो होते रहता है लेकिन समय पर अपने खानपान  , उचित आहार ,पोषण  , व्यायाम का ध्यान रखना भी अत्यंत आवश्यक है । परिवार के लिए आप की भूमिका महत्वपूर्ण है तो अपने - आपको स्वस्थ बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है ताकि आप अपने घर और परिवार के सदस्यों की उचित देखभाल कर सकें । तो साथियों अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें   और परिवार के साथ अपनी देह का भी ध्यान रखें ।
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

तरकीब ( कहानी )

    पिताजी के निधन के पश्चात  हम तीनों यानि कि माँ , मैं और मेरा छोटा भाई..एक - दूसरे के प्यार के सहारे जीना सीख गये थे । मेरी शादी कराके माँ गंगा नहाने का सुख पा गई थी.. उनके शब्दों में ,  पर छोटे भाई की नौकरी लगने के बाद मुझे बहुत चिंता होने लगी थी । दरअसल अपने आस - पास होने वाली घटनाएं हमें डराते रहती हैं साथ ही सावधान भी करती हैं । दो - चार परिचितों की बहुओं का ससुराल में व्यवहार बड़ा डराने वाला था । ऐसे में भाई के लिए दुल्हन का चुनाव करना मेरे लिए बहुत कठिन टास्क बन गया था । मैं अपने पति के साथ देश से बाहर रहूँगी और सास - बहू में तालमेल न रहा तो माँ और भाई दोनों तकलीफ में रहेंगे ।
      किसी लड़की को देखकर  कुछ देर बात करके उसके व्यवहार के बारे में कैसे जाना जा सकता है ।  हालांकि  विवाह  तो ऐसे  ही तय होते  हैं पर मेरा मन बहुत बेचैन था । जुआ खेलने की तरह होती है शादी भी..कभी सफ़ल कभी असफल । बारिश के पहले उमड़ते - घुमड़ते मेघों की तरह मेरे मन - मस्तिष्क में आशंकाओं के बादल उमड़ रहे थे ।
         छोटा भाई हर्षित लम्बे कद का , गोरा  आकर्षक
था  और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर रहा था तो उसके लिए बहुत सारे रिश्ते आ रहे थे पर हमारे लिए चयन करना मुश्किल हो रहा था । परिवार , लड़की की शिक्षा व खूबसूरती तीनों मापदंडों में फिट बैठने वाली दो लड़कियों को सबकी सहमति के बाद चुना गया था । अब इन दोनों को एक बार  देखकर निर्णय लेने का  फैसला किया था हमने । बार - बार लड़की देखकर रिजेक्ट करना लड़की के स्वाभिमान को हर्ट करता है इसलिए घर में जाकर लड़की देखने की परंपरा के सख्त खिलाफ थी मैं । अगर मुमकिन हो तो बाहर से ही देखकर भली भांति सन्तुष्ट होकर ही किसी के घर जाना चाहिए क्योंकि घर जाने पर उनकी उम्मीदें बढ़ जाती है और जाने के बाद बहुत आवश्यक हो  तभी इंकार करना चाहिए  ऐसा मेरा मानना था । दोनों  लड़कियों के घर बारी बारी से हम गये । उनका परिवार हमें बहुत अच्छा लगा परन्तु दो में से किसी एक का ही चयन किया जाना था  ।  अंतिम निर्णय लेने के लिए हम सभी बैठे थे । उनमें से एक लड़की जो  दिखने में थोड़ी उन्नीस ही थी अधिकांश लोगों की पहली पसंद वही थी परन्तु जब मैंने कहा कि  अभी एक व्यक्ति का निर्णय सुनना भी बचा है तो सभी चकित होकर मेरी ओर देखने लगे । सभी तो यहाँ हैं और कौन बच गया । तभी मैने अपने बेटे को संभालने वाली आया प्रभा को बुलाया ...
प्रभा कई वर्षों से  हमारे घर का काम कर रही थी और मेरे बेटे को सम्भाल रही है  । हमने कभी उससे नौकरों की तरह व्यवहार नहीं किया , वह  हमारे घर के सदस्य की तरह ही रहती है । दोनों घरों में मैंने उसे अपने बेटे शीनू को लेकर रसोई में भेजा था उसका दूध गर्म करने के बहाने  क्योंकि मुझे  लगता था कि घर के नौकरों के साथ आप कैसा व्यवहार करते हैं इससे बहुत कुछ आपके व्यक्तित्व का पता लग जाता है । सबको यह जानकर हैरानी हुई कि प्रभा ने बाकी सब के विचारों के विपरीत दूसरी लड़की को अधिक अच्छी बताया था
जो  दिखने में थोड़ी कम सुन्दर थी । मुझे उनका स्वभाव अधिक अच्छा लगा दीदी क्योंकि पहली वाली लड़की ने मुझे एहसास कराया कि  मैं नौकरानी  ही हूँ  और  उसी  तरह  का  बर्ताव किया । मैंने शीनू को गोद में लिए हुए ही दूध गर्म किया..मुझे दिक्कत हुई पर उन्होंने मेरी कोई मदद नहीं की , न ही शीनू को प्यार किया या उसकी ओर देखा  जबकि दूसरी लड़की ने मेरे रसोई में घुसते ही  ओह! यह कितना प्यारा है कहते हुए शीनू को अपनी गोद में ले लिया और उसे अपने हाथों से दूध पिलाया और भी कई चीजें खिलाती रही और शीनू बहुत जल्दी उनसे घुलमिल गया । उन्होंने मेरे साथ भी एक पारिवारिक सदस्य की तरह आदरपूर्वक व्यवहार किया यह लड़की सचमुच दिल की अच्छी है  व सबके साथ अपनेपन के साथ पेश आएगी । वह भैया जी और माँ जी की बहुत अच्छे से देखभाल करेगी । प्रभा ने हम सबका काम आसान कर दिया था और वाकई हमें कभी अपने चयन पर पछताना नहीं पड़ा । अदिति और माँ दोनों की खूब जमती है और मैं विवाह सम्बंधित अपने सभी पूर्वधारणाओं से मुक्त होकर निश्चिंत हो परदेश आ सकी हूँ ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा  चौबे ,  दुर्ग , छत्तीसगढ़

Friday, 25 January 2019

माटी का कर्ज ( लघुकथा )

स्कूल में जब  हिन्दी के मास्टर जी देशभक्ति पूर्ण गीतों का ओज के साथ गायन कराते तो हरि का रग- रग
फड़कने लगता । देश के लिए मर - मिटने के जज्बात दिल में  तरंग उठाने लगते और उसके जबड़े भींच जाते  । सीमा पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के ख्वाब बचपन से ही उसकी आँखों में सजने लगे थे , पर एक दिन यह ख्वाब चूर - चूर हो गया जब सेना में भर्ती के लिए ली गई लिखित परीक्षा  में वह असफल हो गया । उसे शासन के इस नियम से चिढ़  हो गई थी । सीमा पर लड़ने के लिए लिखित परीक्षा की नहीं  जज्बे की आवश्यकता होती है  अपने आपको देश पर कुर्बान कर देने की ।
     अफसोस ! उसका सपना पूरा न हो पाया । उसके शिक्षक ने उसका दर्द महसूस किया और उसे समझाया - हरि ! सीमा पर लड़ना गर्व की बात है पर एक नागरिक अपने कर्तव्य निभाकर भी देशभक्ति  कर सकता है ।जितना खतरा राष्ट्र को सीमा पार से है उससे
कहीं अधिक खतरा भीतरघातियों से होता है । अपने बनकर जो  पीठ   में खंजर घोंपते हैं उनसे निपटना अधिक मुश्किल होता है । देश का हर  नागरिक देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान देता है । हरि अपने शिक्षक की बात समझ गया था और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य निभाने को संकल्पित हो गया था ।  एक सफल कृषक के रूप में उसने अपने जीवन की दूसरी पारी शुरू की । कार्बनिक खाद व तरह - तरह के वैज्ञानिक अनुसन्धानों का प्रयोग करके हरि ने फसलों का उत्पादन कई गुना बढ़ाया । उसे देखकर अन्य गाँवों के युवक जो सरकारी नौकरियों के पीछे भागते थे  और कृषि कार्य को कमतर समझते थे , वे भी इस कार्य के लिए प्रेरित हुए । कृषक समस्त संसार की भूख मिटाते हैं , उनका योगदान देश के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है- यह कहते हुए दिल्ली के मंच पर जब हरि को सफल कृषक का पुरस्कार लेने बुलाया गया तो उसने अपने आपको बहुत ही गौरवान्वित महसूस किया। आज उसने माटी का कर्ज चुका दिया था ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

Wednesday, 23 January 2019

माटी का कर्ज

जाति, सम्प्रदाय के विष को काटने ,
कठोर नीति - शासन का जहर चाहिए ।
पत्थर को भी जो पिघला सके  ,
हर आवाज में वो असर चाहिए ।
अखण्ड राष्ट्र की  जलाने मशाल  ,
देशभक्ति से धधकता जिगर चाहिए ।
देख सके जो धुंध के आर - पार ,
वतन को ऐसी पैनी नजर चाहिए ।
कर सकें भरोसा हरेक शख्स पर ,
सहयोग भरा ऐसा मंजर चाहिए ।
माटी का कर्ज चुकाने के लिए ,
आत्म बलिदान को तैयार सिर चाहिए ।।

स्वरचित -  डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

Monday, 21 January 2019

सरस्वती वंदना

कमल सुआसन पर सज्जित हो ,
मन की कोमल कली खिला दे ।
अपनी करुणा और स्नेह से ,
मन मन्दिर में दीप जला दे ।
हम सबके मन में कल्याणी ,
आज उजाला भर दे ।।
भारत के हर नर - नारी को ,
माता शिक्षित कर दे ।।
अमल - धवल वस्त्रों से शोभित ,
निर्मलता का पाठ पढ़ाती ।
वीणापाणि आपकी वीणा ,
सबको सुख का राग सुनाती ।
जगजननी ! रसना , रचना में ,
स्फूर्ति जागरण भर दे ।।
माँ शारदे यह वर दे ।।
आप सभी को वसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।।

Sunday, 13 January 2019

टूटती लीक ( कहानी )

उस दिन चाचा जी के जन्मदिन पर सभी आये थे । बुआ , बड़ी माँ , उनकी बहुएँ , बेटियाँ  परिवार के लगभग सभी सदस्य एकत्रित हुए थे । औरतों वाली बातें चल रही थीं ...तभी चाचा जी की बहू वहाँ सबके लिए चाय लेकर आई । हमारे घर में बेटी और बहू में कोई फर्क नहीं किया जाता इसलिए सभी मिलजुलकर काम निपटाते हैं , बहुत ही स्वस्थ  वातावरण रहता है घर में । बुआ जी घर की बुजुर्ग हैं , बड़े ही मनोरंजक ढंग से वे हर घटना का वर्णन करती हैं । देखूँ तो बहुरिया
ने कैसी चाय बनाई है , नई बहू को चिढ़ाने के मूड  में थी आज बुआ ।  अरे तुमने तो बड़ी अच्छी चाय बना ली...मैंने पहली रसोई में चावल के धोखे में शक्कर  को धोकर भिगो दिया , थोड़ी देर के बाद ढूंढा तो गायब । सब खिलखिला उठे थे ...बुआ जी की बातें  होती ही मजेदार हैं । पर यह बात सच है कि यहाँ लाड़ - प्यार में पली बुआ को रूढ़िवादी ससुराल  मिला था । हमेशा पर्दे में रहती बहुएँ...उन्होंने देखा उनकी जेठानी अपने ससुर से कभी बात नहीं करती और उन्हें चाय या खाना दूर से जमीन पर रख देतीं मानो वे कोई अछूत हों । अपने घर में तो उन्होंने अपने दादा व पिता को अपनी बहुओं को बेटी की तरह ही प्यार  से बातें करते देखा ।  उन्हें जो बातें पसन्द नहीं आई उसे उन्होंने माना भी नहीं । लीक को तोड़कर वे अपने ससुर के हाथ में ही चाय थमाती और उन्हें पिता का सम्बोधन भी देतीं । जेठानी के ऐतराज करने पर उन्होंने कह दिया मैं उन्हें अपना पिता मानती हूँ इसलिये मैं उनसे बेटी की तरह ही व्यवहार करूँगी , परायों की तरह नहीं ।
        बहुत सी लीकें तोड़ी उन्होंने जो उन्हें अच्छी नहीं लगी । जेठानी एक बार ही ढेर सारा खाना बना कर रख देती  ताकि कम पड़ने पर फिर न बनाना पड़े , इस तरह
बहुत खाना रोज ही फेंकना पड़ता । बुआ जी ने इस पर भी रोक लगा दी , कहा जितनी जरूरत है उतनी ही बनायेंगे । यदि कम पड़ा तो मैं हूँ ना , तुरंत बना कर दूँगी इस तरह अन्न की बर्बादी को कम कर दिया उन्होंने । पढ़ी - लिखी बहू की समझदारी से बहुत प्रसन्न हुए थे उनके ससुर जी । सासु माँ , जो दूसरी बहुओं पर विश्वास नहीं करके थोड़ा राशन निकाल कर देती थी , वह भी बुआ को घर की चाबियाँ सौंपकर निश्चिंत हो गई थी ।
    अभी हँसी मजाक चल ही रह था कि राज अपनी नई नवेली दुल्हन निशा के बगल में आकर बैठ गया । बुआ बोल पड़ी- पता है  हमारे जमाने में पति - पत्नी  बड़ों के सामने बात भी नहीं करते थे  , एक साथ बैठना तो दूर की बात है ।  एक ही जगह जाना होता तो भी अलग - अलग रिक्शे में जाते । मुझे बड़ा अजीब लगता ,  ये कैसा बडों का लिहाज है कि उनके सामने जरूरत पड़ने पर भी अपने पति से बात नहीं कर सकते , कोई तकलीफ हो तो कह नहीं सकते । बुआ ने इस नियम को भी तोड़ दिया था  जब उनकी तबियत खराब हो गई थी । उनका सटीक तर्क सुनकर कोई उन्हें गलत भी नहीं कह पाता था और बुआजी घर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई थी । उनकी बातें आने वाली नई पीढ़ियों के लिए भी फायदेमंद सिद्ध हुई थी क्योंकि बुआ जी के सहयोग और तर्क के कारण ही उनके बाहर पढ़ने जाने व नौकरी करने का मार्ग प्रशस्त हुआ ।
  वो अक्सर कहतीं -- भई वक्त के साथ सबको बदलना पड़ता है , जो नहीं बदलेगा वह पीछे छूट जाएगा । बदलाव को स्वीकार कर ने में ही समझदारी है । जो सुविधाएं उपलब्ध होती हैं उनके अनुसार नियम बनाये जाते हैं । पहले बिजली नहीं थी तो हाथ से ही गेहूँ पीसकर खाते थे , आज आटा चक्की आने के बाद भी वही काम नहीं कर सकते न । जब आधुनिक मशीनों को हमने आसानी से अपना लिया तो आधुनिक विचारों को क्यों नहीं । अब  लड़कियाँ नौकरी करने घर से बाहर जाती हैं तो  उनके लिए कायदे - कानून वही वर्षों पुराने क्यों ? औरतें बाहर का काम सम्भाल रही हैं तो पुरूष घर के छोटे - मोटे काम में मदद क्यों नहीं कर सकते ? यदि पति पत्नी की मदद कर दे तो हँसी उड़ाने वाली घर की औरतें ही होती हैं इसलिए यदि समाज को बदलना है तो शुरुआत घर की औरतों को ही करनी पड़ेगी । यदि वे अपने विचारों को व्यापक करेंगी तो घर के बाकी सदस्यों को कोई ऐतराज नहीं होगा । सारे बच्चे मंत्रमुग्ध हो बुआ को सुन रहे थे और मन ही मन उन्हें सराह भी रहे थे क्योंकि उन्होंने निडरता के साथ गलत परम्पराओं का विरोध किया था और सही का साथ दिया था । रिश्तों का आदर करते हुए उन्होंने नई लीक बनाई थी , हम नई पीढ़ी को भी यह समझना होगा कि हर पुरानी परंपरा खराब नहीं है और हर नई विधि सही हो जरूरी नहीं है । दो पीढ़ियों के बीच फर्क तो हमेशा रहेगा परन्तु सामंजस्य बनाते हुए प्रेम को बनाये रखना एक चुनौती है जिसका सामना हमें करना होगा ।
बुआ जी की तरह सही का चयन करके ।

स्वरचित -  डॉ.  दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

Saturday, 5 January 2019

बदलते वक्त के पापा

# बदलते वक्त के पापा  #
माँ नौ माह बच्चे को अपनी कोख में रखकर उसे अपने रक्त से पोषित - पल्लवित करती है.. माँ की तकलीफें , माँ का त्याग सच में सराहनीय है पर जो अपने बच्चे  व माँ की देखरेख , उनके स्वास्थ्य  के लिए चिंतित रहते हैं वो पापा होते हैं । वे कभी नहीं जताते कि वो कितने फिक्रमंद हैं अपने आने वाले बच्चे के जन्म के लिए.. माँ शारीरिक रूप से बच्चे को बड़ा करते रहती है तो पापा माँ की मदद करते मानसिक रूप से जुड़े रहते हैं । पत्नी अब उनके होनेवाले बच्चे की माँ हो जाती है और उसकी देखभाल उनकी प्रथम प्राथमिकता हो जाती है ।
    बच्चे की हलचल , स्पर्श उनके लिए अद्भुत होता है , वो उसे थपकी देकर सुलाते हैं... आधी रात को गहन निद्रा में सोई पत्नी को न जगाकर स्वयं ही बच्चे की डाइपर बदल देते हैं... रातों को जागकर बच्चे को सुलाते हैं ।  वे सभी जिम्मेदारियां  खुशी से निभाते हैं ..अपने बच्चे के भविष्य के लिए सदा चिंतित रहते हैं और उसे वो सब कुछ देना चाहते हैं जो उन्हें नहीं मिल पाया । बदलते वक्त के साथ पिता अधिक जागरूक हुए हैं और अपने बच्चे के सर्वांगीण विकास में माँ के साथ कंधे से कंधा मिला रहे हैं । आज वो हर काम करते हैं जो एक माँ अपने बच्चे के लिए करती है । पिता के दायित्व अब दफ्तर तक सीमित न होकर घर की हर जरूरत में शामिल हो गए हैं । वे अपने बच्चे के लिए एक शिक्षक हैं , गाइड हैं , अच्छे दोस्त हैं । बदलते दौर में जब माँ की जिम्मेदारियां बढ़ी हैं तो पापा भी अपनी जिम्मेदारी समझने लगे हैं , उनके कार्यों का दायरा भी विस्तृत हो गया है। वे अपनी पत्नी के सहयोगी व दोस्त हैं , बच्चों के पथ - प्रदर्शक हैं । पारम्परिक ढाँचे से जुदा पिता का एक नया रूप देखने को मिला है और यह समाज व परिवार के लिए एक अनमोल उपहार है ।

Thursday, 3 January 2019

अदला - बदली ( कहानी )

आज अपने प्रिय दोस्त कृष्णन की बेटी का कन्यादान करते हुए रामबाबू की आँखें भर आईं थीं... वे ही क्या
वहाँ उपस्थित सारे लोग भावाभिभूत हो गए थे । ऐसा प्यार , ऐसी दोस्ती सिर्फ किताबों में ही पढ़ने को मिलती है । स्नेह की वह कौन सी डोर थी जिसने दो अनजान लोगों को आजन्म बाँध दिया था..कहने को वे दो परिवार थे ,पर उनके सुख - दुःख सब एक थे । दोनों घरों की रसोई कहने को अलग थी पर जिसे जहाँ  खाना हो पूरी आजादी थी । रामबाबू के बच्चे  कृष्णन अंकल के घर  की इडली पसन्द करते थे और कृष्णन के बच्चे रामबाबू के घर का सादा खाना पसंद करते ।
       वे दो घर थे पर उनके दिल एक थे । कृष्णन के जाने के बाद रामबाबू ने  उसके  परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली थी और अपने दोस्त के अंतिम संस्कार के दिन उससे किया वादा वे कभी भी नहीं भूले...और शायद अपने अंतिम समय तक नहीं भूलेंगे ।
          कृष्णन व रामबाबू दोनों एक इस्पात संयंत्र में साथ ही काम करते थे । एक ही बिल्डिंग में क्वार्टर भी मिला था । दोनों एक दूसरे के सुख - दुःख में काम आते थे , दोनों परिवारों में प्रगाढ़ सम्बन्ध थे । वक्त - बेवक्त सुविधानुसार वे अपनी ड्यूटी भी बदल लिया करते थे । उस दिन भी यही हुआ था ...रामबाबू   ! कल मेरे बेटे का जन्मदिन है ..आज  मेरा वीकली ऑफ है ,आज
मैं तुम्हारी  ड्यूटी कर लूँ क्या ? तुम कल मेरी ड्यूटी कर लेना । नौ अक्टूबर को कृष्णन  सुबह ही आ पहुँचा था क्योंकि  रामबाबू की सेकंड शिफ्ट  ड्यूटी थी । अरे ! बिल्कुल यार , इसमें कौन सी बड़ी बात है । आज नहीं कल ड्यूटी कर लेंगे । तुम निश्चिन्ततापूर्वक कल अपने बेटे का जन्मदिन मनाना - रामबाबू ने कहा ।
      दोपहर में जब व्हाट्सएप और टी. वी. के द्वारा प्लांट में हादसा होने की बात सुनी तो सहसा रामबाबू को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ ।आनन फानन दोस्तों को फोन कर सही जानकारी ली तो मालूम हुआ गैस पाइप फट जाने के कारण बहुत बड़ा विस्फोट हुआ था । वहाँ काम करने वाले सम्भल भी नहीं पाए कि आग की लपटों ने उन्हें झुलसा दिया था ।तेरह लोगों की मौत हो गई थी जिनमें से एक कृष्णन भी था । लगभग इतने ही लोग गम्भीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराये गये थे ।  ये क्या किया कृष्णन... तुमने मेरे  हिस्से की मौत को गले लगा लिया और अपनी जिंदगी मुझे तोहफे में दे दी...दोस्त तूने ड्यूटी की नहीं मौत और जिंदगी की अदला -  बदली कर ली ....बिलख पड़े थे रामबाबू ।
       कृष्णन बूढ़े माँ - बाप का इकलौता सहारा था..पत्नी और दो छोटे बच्चे... उसका पूरा परिवार बिखर गया था । जाने वाला तो चला जाता है परन्तु अपनों के लिए जीवन भर का दर्द छोड़ जाता है । कृष्णन उसके बदले  ड्यूटी नहीं गया होता तो यही मातम उसके घर पर होता...कपड़े के इस पुलिंदे में रामबाबू का शरीर  सिमटा होता । दहाड़ें मारकर रोती कृष्णन की पत्नी के स्थान पर उसे अपनी पत्नी दिखाई दे रही थी और वहीं बिलखते उसके अपने बच्चे ।आज जीवन की एक बड़ी सच्चाई को महसूस कर रहे थे रामबाबू ...दिल भर आया था उनका..माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आई थीं ...आँखों से बहते आँसुओं को पोंछकर उसने निर्णय ले लिया था , कृष्णन के परिवार को अपनाने का । दोनों बच्चों को अपनी बाँहों में भींचते हुए कहा था उसने....भाभी ! यह जिंदगी कृष्णन की दी हुई है , उसका स्थान तो मैं कभी नहीं ले सकता परन्तु उसकी सारी  जिम्मेदारियाँ  अब मेरी हैं । सच में रामबाबू ने अपना वादा निभाया था ।
         रामबाबू और सभी  दोस्तों ने ही कृष्णन का क्रियाकर्म पूर्ण कराया तथा प्रोविडेंट फंड , बीमा से लेकर कृष्णन की पत्नी की नौकरी लगते तक सब काम उसने अपने हाथों में ले लिया । अपना घर बन जाने के बाद भी कभी वहाँ शिफ्ट नहीं हुए ताकि कृष्णन के परिवार की भी देखभाल कर सकें । उसके बच्चों की देखरेख से लेकर  उसके  पिता के अंतिम संस्कार जैसे सभी कर्म  उसने जिम्मेदारीपूर्वक निभाये ।
         आज तो बड़ी खुशी का दिन था...कृष्णन की बेटी की विदाई है...  ऐसा दोस्त पाकर शायद कृष्णन की  आत्मा  भी खुशी व सुकून भरी साँस ले रही होगी...वक्त सब घाव भर देता है पर किसी की कमी कभी पूरी नहीं कर सकता । कृष्णन की यादों की बेल रामबाबू के अंतर्मन में बहुत गहरे उगी है वो कभी नहीं मिट सकती , उसके साथ रहेगी अंतिम  सफर तक ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़