स्कूल में जब हिन्दी के मास्टर जी देशभक्ति पूर्ण गीतों का ओज के साथ गायन कराते तो हरि का रग- रग
फड़कने लगता । देश के लिए मर - मिटने के जज्बात दिल में तरंग उठाने लगते और उसके जबड़े भींच जाते । सीमा पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के ख्वाब बचपन से ही उसकी आँखों में सजने लगे थे , पर एक दिन यह ख्वाब चूर - चूर हो गया जब सेना में भर्ती के लिए ली गई लिखित परीक्षा में वह असफल हो गया । उसे शासन के इस नियम से चिढ़ हो गई थी । सीमा पर लड़ने के लिए लिखित परीक्षा की नहीं जज्बे की आवश्यकता होती है अपने आपको देश पर कुर्बान कर देने की ।
अफसोस ! उसका सपना पूरा न हो पाया । उसके शिक्षक ने उसका दर्द महसूस किया और उसे समझाया - हरि ! सीमा पर लड़ना गर्व की बात है पर एक नागरिक अपने कर्तव्य निभाकर भी देशभक्ति कर सकता है ।जितना खतरा राष्ट्र को सीमा पार से है उससे
कहीं अधिक खतरा भीतरघातियों से होता है । अपने बनकर जो पीठ में खंजर घोंपते हैं उनसे निपटना अधिक मुश्किल होता है । देश का हर नागरिक देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान देता है । हरि अपने शिक्षक की बात समझ गया था और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य निभाने को संकल्पित हो गया था । एक सफल कृषक के रूप में उसने अपने जीवन की दूसरी पारी शुरू की । कार्बनिक खाद व तरह - तरह के वैज्ञानिक अनुसन्धानों का प्रयोग करके हरि ने फसलों का उत्पादन कई गुना बढ़ाया । उसे देखकर अन्य गाँवों के युवक जो सरकारी नौकरियों के पीछे भागते थे और कृषि कार्य को कमतर समझते थे , वे भी इस कार्य के लिए प्रेरित हुए । कृषक समस्त संसार की भूख मिटाते हैं , उनका योगदान देश के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है- यह कहते हुए दिल्ली के मंच पर जब हरि को सफल कृषक का पुरस्कार लेने बुलाया गया तो उसने अपने आपको बहुत ही गौरवान्वित महसूस किया। आज उसने माटी का कर्ज चुका दिया था ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment