जाति, सम्प्रदाय के विष को काटने ,
कठोर नीति - शासन का जहर चाहिए ।
पत्थर को भी जो पिघला सके ,
हर आवाज में वो असर चाहिए ।
अखण्ड राष्ट्र की जलाने मशाल ,
देशभक्ति से धधकता जिगर चाहिए ।
देख सके जो धुंध के आर - पार ,
वतन को ऐसी पैनी नजर चाहिए ।
कर सकें भरोसा हरेक शख्स पर ,
सहयोग भरा ऐसा मंजर चाहिए ।
माटी का कर्ज चुकाने के लिए ,
आत्म बलिदान को तैयार सिर चाहिए ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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