Tuesday, 29 January 2019

तरकीब ( कहानी )

    पिताजी के निधन के पश्चात  हम तीनों यानि कि माँ , मैं और मेरा छोटा भाई..एक - दूसरे के प्यार के सहारे जीना सीख गये थे । मेरी शादी कराके माँ गंगा नहाने का सुख पा गई थी.. उनके शब्दों में ,  पर छोटे भाई की नौकरी लगने के बाद मुझे बहुत चिंता होने लगी थी । दरअसल अपने आस - पास होने वाली घटनाएं हमें डराते रहती हैं साथ ही सावधान भी करती हैं । दो - चार परिचितों की बहुओं का ससुराल में व्यवहार बड़ा डराने वाला था । ऐसे में भाई के लिए दुल्हन का चुनाव करना मेरे लिए बहुत कठिन टास्क बन गया था । मैं अपने पति के साथ देश से बाहर रहूँगी और सास - बहू में तालमेल न रहा तो माँ और भाई दोनों तकलीफ में रहेंगे ।
      किसी लड़की को देखकर  कुछ देर बात करके उसके व्यवहार के बारे में कैसे जाना जा सकता है ।  हालांकि  विवाह  तो ऐसे  ही तय होते  हैं पर मेरा मन बहुत बेचैन था । जुआ खेलने की तरह होती है शादी भी..कभी सफ़ल कभी असफल । बारिश के पहले उमड़ते - घुमड़ते मेघों की तरह मेरे मन - मस्तिष्क में आशंकाओं के बादल उमड़ रहे थे ।
         छोटा भाई हर्षित लम्बे कद का , गोरा  आकर्षक
था  और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर रहा था तो उसके लिए बहुत सारे रिश्ते आ रहे थे पर हमारे लिए चयन करना मुश्किल हो रहा था । परिवार , लड़की की शिक्षा व खूबसूरती तीनों मापदंडों में फिट बैठने वाली दो लड़कियों को सबकी सहमति के बाद चुना गया था । अब इन दोनों को एक बार  देखकर निर्णय लेने का  फैसला किया था हमने । बार - बार लड़की देखकर रिजेक्ट करना लड़की के स्वाभिमान को हर्ट करता है इसलिए घर में जाकर लड़की देखने की परंपरा के सख्त खिलाफ थी मैं । अगर मुमकिन हो तो बाहर से ही देखकर भली भांति सन्तुष्ट होकर ही किसी के घर जाना चाहिए क्योंकि घर जाने पर उनकी उम्मीदें बढ़ जाती है और जाने के बाद बहुत आवश्यक हो  तभी इंकार करना चाहिए  ऐसा मेरा मानना था । दोनों  लड़कियों के घर बारी बारी से हम गये । उनका परिवार हमें बहुत अच्छा लगा परन्तु दो में से किसी एक का ही चयन किया जाना था  ।  अंतिम निर्णय लेने के लिए हम सभी बैठे थे । उनमें से एक लड़की जो  दिखने में थोड़ी उन्नीस ही थी अधिकांश लोगों की पहली पसंद वही थी परन्तु जब मैंने कहा कि  अभी एक व्यक्ति का निर्णय सुनना भी बचा है तो सभी चकित होकर मेरी ओर देखने लगे । सभी तो यहाँ हैं और कौन बच गया । तभी मैने अपने बेटे को संभालने वाली आया प्रभा को बुलाया ...
प्रभा कई वर्षों से  हमारे घर का काम कर रही थी और मेरे बेटे को सम्भाल रही है  । हमने कभी उससे नौकरों की तरह व्यवहार नहीं किया , वह  हमारे घर के सदस्य की तरह ही रहती है । दोनों घरों में मैंने उसे अपने बेटे शीनू को लेकर रसोई में भेजा था उसका दूध गर्म करने के बहाने  क्योंकि मुझे  लगता था कि घर के नौकरों के साथ आप कैसा व्यवहार करते हैं इससे बहुत कुछ आपके व्यक्तित्व का पता लग जाता है । सबको यह जानकर हैरानी हुई कि प्रभा ने बाकी सब के विचारों के विपरीत दूसरी लड़की को अधिक अच्छी बताया था
जो  दिखने में थोड़ी कम सुन्दर थी । मुझे उनका स्वभाव अधिक अच्छा लगा दीदी क्योंकि पहली वाली लड़की ने मुझे एहसास कराया कि  मैं नौकरानी  ही हूँ  और  उसी  तरह  का  बर्ताव किया । मैंने शीनू को गोद में लिए हुए ही दूध गर्म किया..मुझे दिक्कत हुई पर उन्होंने मेरी कोई मदद नहीं की , न ही शीनू को प्यार किया या उसकी ओर देखा  जबकि दूसरी लड़की ने मेरे रसोई में घुसते ही  ओह! यह कितना प्यारा है कहते हुए शीनू को अपनी गोद में ले लिया और उसे अपने हाथों से दूध पिलाया और भी कई चीजें खिलाती रही और शीनू बहुत जल्दी उनसे घुलमिल गया । उन्होंने मेरे साथ भी एक पारिवारिक सदस्य की तरह आदरपूर्वक व्यवहार किया यह लड़की सचमुच दिल की अच्छी है  व सबके साथ अपनेपन के साथ पेश आएगी । वह भैया जी और माँ जी की बहुत अच्छे से देखभाल करेगी । प्रभा ने हम सबका काम आसान कर दिया था और वाकई हमें कभी अपने चयन पर पछताना नहीं पड़ा । अदिति और माँ दोनों की खूब जमती है और मैं विवाह सम्बंधित अपने सभी पूर्वधारणाओं से मुक्त होकर निश्चिंत हो परदेश आ सकी हूँ ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा  चौबे ,  दुर्ग , छत्तीसगढ़

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