आज अपने प्रिय दोस्त कृष्णन की बेटी का कन्यादान करते हुए रामबाबू की आँखें भर आईं थीं... वे ही क्या
वहाँ उपस्थित सारे लोग भावाभिभूत हो गए थे । ऐसा प्यार , ऐसी दोस्ती सिर्फ किताबों में ही पढ़ने को मिलती है । स्नेह की वह कौन सी डोर थी जिसने दो अनजान लोगों को आजन्म बाँध दिया था..कहने को वे दो परिवार थे ,पर उनके सुख - दुःख सब एक थे । दोनों घरों की रसोई कहने को अलग थी पर जिसे जहाँ खाना हो पूरी आजादी थी । रामबाबू के बच्चे कृष्णन अंकल के घर की इडली पसन्द करते थे और कृष्णन के बच्चे रामबाबू के घर का सादा खाना पसंद करते ।
वे दो घर थे पर उनके दिल एक थे । कृष्णन के जाने के बाद रामबाबू ने उसके परिवार की देखभाल की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली थी और अपने दोस्त के अंतिम संस्कार के दिन उससे किया वादा वे कभी भी नहीं भूले...और शायद अपने अंतिम समय तक नहीं भूलेंगे ।
कृष्णन व रामबाबू दोनों एक इस्पात संयंत्र में साथ ही काम करते थे । एक ही बिल्डिंग में क्वार्टर भी मिला था । दोनों एक दूसरे के सुख - दुःख में काम आते थे , दोनों परिवारों में प्रगाढ़ सम्बन्ध थे । वक्त - बेवक्त सुविधानुसार वे अपनी ड्यूटी भी बदल लिया करते थे । उस दिन भी यही हुआ था ...रामबाबू ! कल मेरे बेटे का जन्मदिन है ..आज मेरा वीकली ऑफ है ,आज
मैं तुम्हारी ड्यूटी कर लूँ क्या ? तुम कल मेरी ड्यूटी कर लेना । नौ अक्टूबर को कृष्णन सुबह ही आ पहुँचा था क्योंकि रामबाबू की सेकंड शिफ्ट ड्यूटी थी । अरे ! बिल्कुल यार , इसमें कौन सी बड़ी बात है । आज नहीं कल ड्यूटी कर लेंगे । तुम निश्चिन्ततापूर्वक कल अपने बेटे का जन्मदिन मनाना - रामबाबू ने कहा ।
दोपहर में जब व्हाट्सएप और टी. वी. के द्वारा प्लांट में हादसा होने की बात सुनी तो सहसा रामबाबू को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ ।आनन फानन दोस्तों को फोन कर सही जानकारी ली तो मालूम हुआ गैस पाइप फट जाने के कारण बहुत बड़ा विस्फोट हुआ था । वहाँ काम करने वाले सम्भल भी नहीं पाए कि आग की लपटों ने उन्हें झुलसा दिया था ।तेरह लोगों की मौत हो गई थी जिनमें से एक कृष्णन भी था । लगभग इतने ही लोग गम्भीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराये गये थे । ये क्या किया कृष्णन... तुमने मेरे हिस्से की मौत को गले लगा लिया और अपनी जिंदगी मुझे तोहफे में दे दी...दोस्त तूने ड्यूटी की नहीं मौत और जिंदगी की अदला - बदली कर ली ....बिलख पड़े थे रामबाबू ।
कृष्णन बूढ़े माँ - बाप का इकलौता सहारा था..पत्नी और दो छोटे बच्चे... उसका पूरा परिवार बिखर गया था । जाने वाला तो चला जाता है परन्तु अपनों के लिए जीवन भर का दर्द छोड़ जाता है । कृष्णन उसके बदले ड्यूटी नहीं गया होता तो यही मातम उसके घर पर होता...कपड़े के इस पुलिंदे में रामबाबू का शरीर सिमटा होता । दहाड़ें मारकर रोती कृष्णन की पत्नी के स्थान पर उसे अपनी पत्नी दिखाई दे रही थी और वहीं बिलखते उसके अपने बच्चे ।आज जीवन की एक बड़ी सच्चाई को महसूस कर रहे थे रामबाबू ...दिल भर आया था उनका..माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आई थीं ...आँखों से बहते आँसुओं को पोंछकर उसने निर्णय ले लिया था , कृष्णन के परिवार को अपनाने का । दोनों बच्चों को अपनी बाँहों में भींचते हुए कहा था उसने....भाभी ! यह जिंदगी कृष्णन की दी हुई है , उसका स्थान तो मैं कभी नहीं ले सकता परन्तु उसकी सारी जिम्मेदारियाँ अब मेरी हैं । सच में रामबाबू ने अपना वादा निभाया था ।
रामबाबू और सभी दोस्तों ने ही कृष्णन का क्रियाकर्म पूर्ण कराया तथा प्रोविडेंट फंड , बीमा से लेकर कृष्णन की पत्नी की नौकरी लगते तक सब काम उसने अपने हाथों में ले लिया । अपना घर बन जाने के बाद भी कभी वहाँ शिफ्ट नहीं हुए ताकि कृष्णन के परिवार की भी देखभाल कर सकें । उसके बच्चों की देखरेख से लेकर उसके पिता के अंतिम संस्कार जैसे सभी कर्म उसने जिम्मेदारीपूर्वक निभाये ।
आज तो बड़ी खुशी का दिन था...कृष्णन की बेटी की विदाई है... ऐसा दोस्त पाकर शायद कृष्णन की आत्मा भी खुशी व सुकून भरी साँस ले रही होगी...वक्त सब घाव भर देता है पर किसी की कमी कभी पूरी नहीं कर सकता । कृष्णन की यादों की बेल रामबाबू के अंतर्मन में बहुत गहरे उगी है वो कभी नहीं मिट सकती , उसके साथ रहेगी अंतिम सफर तक ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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