Tuesday, 12 March 2019

होली का उपहार ( लघुकथा )

अमन थोड़ा शर्मिला ...शांत स्वभाव का लड़का था.. उम्र यही कोई दस बरस की होगी...अभी इस शहर में नया - नया आया था । कॉलोनी में अभी कोई दोस्त नहीं बने थे..हाँ स्कूल में कुछ दोस्त जरुर बन गए थे ।अपनी बालकनी से नीचे अपने हमउम्र लड़कों को खेलते देखकर उसकी भी  इच्छा होती कि उनके साथ जाकर खेले...पर वह पहल नहीं कर पाता । माँ ने कई बार कहा जा बेटा जाकर उनसे दोस्ती कर..कब तक ऐसे अकेले रहेगा ।  दिन निकलते जा रहे थे ...होली पास आ रही थी.. कॉलोनी के सारे बच्चे होलिका दहन के लिए लकड़ियाँ इकट्ठा कर रहे थे.. होली अमन का फेवरेट त्यौहार था..उसकी भी इच्छा हो रही थी कि वह उनसे घुले - मिले , दोस्तों की मदद करे ।  होली का त्यौहार तो समूह में ही अच्छा लगता है । आखिर उसे एक उपाय सूझा... घर की छत पर कुछ पुराने फर्नीचर और गत्ते के डिब्बे पड़े हुए थे जो मकान शिफ्ट करते वक्त पैकिंग के लिए लाए गए थे । अमन उनमें से कुछ गत्ते लेकर होलिका के पास गया ...उसे देखकर लड़कों की टोली का उत्साह बढ़ गया और उन्होंने खुशी से उसका अपनी टीम में स्वागत किया । अमन ने उनसे बाकी सामान नीचे उतारने के लिए मदद करने को कहा और पूरी वानर सेना जुट गई छत का सामान नीचे लाने में... उनकी होलिका काफी ऊँची हो गई थी और मम्मी भी खुश हो गई थी छत की सफाई हो जाने पर । सबने होलिका की पूजा करके होलिका जलाई और दूसरे दिन खूब होली खेली...रंगों से एक - दूसरे को सराबोर कर दिया...मम्मियों को अपने बच्चे को पहचानना मुश्किल हो रहा था...फिर सबने एक - दूसरे के घर जाकर मनपसन्द व्यंजन के मजे लिए । सबसे अधिक खुश अमन था...उसकी झिझक दूर हो गई थी और अपना मनपसन्द त्यौहार होली के मजे के साथ -  साथ उसे ढेर सारे दोस्त भी मिल गए थे । इस होली का यह सबसे खूबसूरत उपहार था ।

स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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