गुपचुप में आलू चना भरते उन नन्हें हाथों पर ध्यान था मेरा...तेजी से काम करते उन हाथों और उस मासूम चेहरे में कुछ विशेष आकर्षण था । तेरह - चौदह वर्ष का वह लड़का शायद स्कूल भी जाता होगा और पार्ट टाइम में शादी , पार्टी में काम करता होगा । मजबूरी व परिस्थितियां कितनी जल्दी बच्चों में जिम्मेदारी के भाव जगा देते हैं ।
खेलने व पढ़ने की उम्र में वे समय निकाल कर काम करने जाते हैं और पढ़ाई भी करते हैं । रात के दस बजे फिर उस चेहरे को देखने की चाह मैं दबा न पाई...अभी वह गुपचुप में पानी भरकर देता जा रहा था , आँखें नींद से बोझिल हो चली थी और थकान उसके चेहरे पर झलक रही थी । शब्द मौन थे बस हाथ बोल रहे थे.. रात की स्याही उन आँखों में बहुत गहरे उतर रही थी । वह उम्मीद भरी आँखों से पार्टी खत्म होने का इंतजार कर रहा होगा और अपनी दिन भर की कमाई का भी ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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