नीले आसमान के नीचे फूलों के बगीचे में सिया आँखें बंद किये बैठी थी... सुरभित पवन उसके दिल में
उमंगों और खुशियों की लहरें तरंगित कर रही थीं और पारिजात के फूल उसके ऊपर झर रहे थे...कितना सुंदर ख्वाब था यह..और सिया नींद टूट जाने पर भी अपनी आँखें नहीं खोलना चाह रही थी.. काश ! यह ख्वाब हकीकत में बदल जाये ।
सूरज आसमान में नारंगी रंग बिखेर चुका था जब माँ की आवाज उसके कानों में पड़ी..सिया ..उठ ! तुझे
आज डोंगरगढ़ जाना है ना ...माता बम्लेश्वरी के दर्शन करने...चल उठ , नहा कर तैयार हो जा..तेरे दोस्त आते होंगे । ओह नो ! माँ... पहले क्यों नहीं उठाया ? बाप रे । बहुत देर हो गई.. घड़ी देखते ही सिया झटके से उठ बैठी और बाथरूम की ओर दौड़ी ।
लो , कब से आवाज दे रही हूँ.. कहती है उठाया क्यों नहीं ? पता नहीं इस लड़की का क्या होगा...बड़बड़ाते हुए माँ रसोईघर की ओर चल दी ताकि सिया हड़बड़ी में बिना कुछ खाये ही न निकल पड़े । उन्होंने सिया के तैयार होते तक नाश्ता तैयार करके थोड़ा सा पैक भी कर दिया , अगर समय न मिले तो वह गाड़ी में ही नाश्ता कर ले । सिया के तैयार होते तक उसके दोस्त मानव , विकास , रीमा , रीना आ चुके थे और ड्राइंगरूम में रखे नाश्ते पर टूट पड़े थे । पढ़ाई के लिए घर से बाहर रहने वाले बच्चों की मनःस्थिति समझती थी सिया की मम्मी क्योंकि वह स्वयं भी हॉस्टल में रह चुकी थीं । परन्तु घर में ही रही सिया को इन सबका एहसास नहीं था...घर में उसकी सारी फरमाइशें जो पूरी हो जाती थीं । कभी - कभी वह खीझ कर बोल भी पड़ती थीं...तू ना , बाहर रहने जाएगी तभी सुधरेगी ।
कुछ ही देर में सभी बच्चे डोंगरगढ़ के लिए निकल चुके थे । समय पर वापस आने की हिदायत देकर माँ ने उन्हें विदा किया । मानव , विकास , रीमा , रीना , सिया
ये सभी शंकराचार्य इंजीनियरिंग कॉलेज में कम्प्यूटर साइंस अंतिम वर्ष के छात्र थे । चूँकि विकास , रीमा व रीना बाहर से आये थे तो घर जाने से पूर्व एक बार माँ बम्लेश्वरी के दर्शन करना चाह रहे थे और तुरत - फुरत रविवार को जाने का प्रोग्राम बन गया था । वैसे भी कॉलेज छूटने के बाद कौन , कहाँ रहेगा की चिंता सबको सता रही थी । मानव और सिया का कैम्पस
प्लेसमेंट द्वारा टी. सी. एस. में चयन हो गया था । बचपन से दोनों साथ ही पढ़े थे और कब उनकी दोस्ती प्रेम के रंग में रंग गई , उन्हें पता ही नहीं चला ।
लम्बे समय के साथ ने उन्हें एक - दूसरे को समझने
का भरपूर मौका दिया । स्कूल के दिनों में तो वे खूब लड़ते थे क्योंकि दोनों ही विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेते थे और प्रतियोगिता में हार - जीत तो होनी ही है । कभी मानव जीतता तो कभी सिया...खेल , वाद - विवाद , भाषण सभी में वे आगे रहते...कॉलेज आते - आते दोनों का व्यक्तित्व गम्भीर व सुलझा हुआ हो गया था ।
हँसते - गाते वे डोंगरगढ़ के मंदिर गये...सीढियां चढ़कर उन्होंने माता बम्लेश्वरी के दर्शन किये । वहीं खाना खाया और शाम चार बजे घर वापसी के लिए निकल पड़े । मानव की आवाज बहुत मधुर थी...उसने जैसे ही गाना शुरू किया...कौन तुम्हें यूँ प्यार करेगा जितना प्यार मैं करता हूँ...उसकी आवाज के साथ ही हो..ओ हो ओ..चिल्लाकर सब उन्हें चिढ़ाने के मूड में आ गए थे कि अचानक एक ट्रक ने उन्हें जोर की टक्कर मारी और वे सम्भलना तो दूर , सोच भी नहीं पाए कि क्या हुआ । प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि उनकी विपरीत दिशा से आ रहे ट्रक का एक पहिया पंचर हो गया और वह असन्तुलित होकर उनकी कार को टक्कर मारता हुआ पेड़ से जा टकराया था । ड्राइवर और कंडक्टर की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी और कार के सभी बच्चों को गम्भीर अवस्था में राजनांदगांव के अस्पताल में भर्ती कराया गया । वक्त का पहिया इतना तेज घूमता है कि कब क्या हो जायेगा , कुछ कहा नहीं जा सकता । अभी थोड़ी देर पहले जहाँ स्वर लहरियाँ गूँज रही थी , खुशियों का कोलाहल हो रहा था... वहाँ भय और मातम पसरा हुआ था । उनके परिजनों पर मानों वज्रपात हो गया था.. वे रोते - बिलखते अपने बच्चों की चिंता में इधर - उधर भटक रहे थे । खुशी - खुशी, हँसते- खिलखिलाते बच्चों को विदा किया था और वे अभी मौत से संघर्ष कर रहे हैं । भाग्य ने किसके लिए क्या लिखा है... कोई इसका अनुमान नहीं लगा सकता । मानव की हालत बहुत गम्भीर होने के कारण उसके माता- पिता उसे दिल्ली ले गए...बाकी सभी दोस्तों को कुछ दिनों बाद अस्पताल से छुट्टी मिल गई । परन्तु अभी भी उन्हें घर पर आराम करना था क्योंकि लगभग सभी के हाथ या पैर में फ्रैक्चर और सिर पर टांके लगे थे । वे सभी ईश्वर का शुक्रिया अदा कर रहे थे क्योंकि उन्होंने उन्हें एक नया जन्म दिया था , मौत के करीब रहकर जिंदगी का मोल जान लिया था उन्होंने... उसके आगे ये छोटी - मोटी तकलीफें कुछ भी नहीं थी । बस , उन्हें मानव की चिंता खाये जा रही थी क्योंकि वह दिल्ली से वापस नहीं आया था । महीनों बाद जब मानव वापस आया तो उसे देखकर सभी दोस्त बिलख पड़े थे । जिस मानव को देखकर जवां दिलों की धड़कन रुक जाती थी... लड़कियाँ उससे दोस्ती करने को मरती थी..वह आज असहाय , निराशा के अंधेरों में डूबा था । इतना प्रयास करने के बाद भी डॉक्टर उसका पैर नहीं बचा पाये थे । उसका दाहिना पैर घुटने तक काटना पड़ गया था । मानव को दिलासा देने के लिए उन्होंने अपने आँसू पी लिए थे..उसके सामने उन्हें मजबूत बने रहकर उसे भविष्य के लिए तैयार करना था । नये सिरे से जिंदगी जीने के लिए प्रेरित करना था ।
जब सब कुछ अच्छा होता है तो वक्त के पंख लग जाते हैं परन्तु परिस्थितियाँ विपरीत होती हैं तो वक्त काटे नहीं कटता । पल - पल भारी लग रहा था... सिया के मन में तूफान मचा हुआ था.. अन्तर्द्वन्द्व चल रहा था.. ख्वाबों का दर्पण चूर - चूर हो गया था और उसकी किरचें सीधे दिल में चुभ रही थी । अब उनका भविष्य क्या होगा ? क्या उसे अब भी मानव का साथ देना चाहिए या अलग होने का निर्णय ले लेना चाहिए । बुद्धि का तो यही तर्क था कि जीवन भर परेशान होने से बेहतर है कि अपने अतीत को भूलकर एक नई राह पर चला जाये...पर दिल को बुद्धि का यह तर्क पसन्द नहीं आया क्योंकि प्यार करती है वह मानव से...उसे यूँ अंधेरों में छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकती । जीवन भर साथ देने का वादा करके मानव से वह छल नहीं कर सकती...आज जो मानव के साथ हुआ है वह सिया के साथ भी तो हो सकता था । क्या मानव उसे उसकी कमियों के साथ नहीं अपनाता ? नहीं । उसे पूर्ण विश्वास है अपने दोस्त और प्यार पर...उसने मानव की आँखों में सदैव सच्चाई व दृढ़ता ही देखी है , कभी कोई दुविधा नहीं...जीवन के प्रति उसका नजरिया सदा सकारात्मक रहा । खूबसूरत फूलों को देखकर बहकने वाला भौंरा नहीं था वह..मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह अपने प्यार पर एकनिष्ठ रहने वाला था... नहीं सिया सिर्फ इसलिए कि अब वह अपाहिज हो गया है , उसे तुम छोड़ नहीं सकती बल्कि अब तुम्हारी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है... उसे अपने पैरों पर खड़ा करने की...उसका खोया हुआ आत्म विश्वास लौटाने की । सिया ने दिमाग के तर्कों को परे धकेल दिया और अपने प्यार भरे दिल की ही सुनी ।
उधर मानव की भी यही दशा थी । वह भी अपने प्यार को पीड़ा नहीं देना चाहता था.. किसी की सहानुभूति नहीं चाहता था । उसने अपने - आपको सिया से दूर रखना चाहा ताकि सिया एक सुखद भविष्य की ओर बढ़े । उसने जान - बूझकर सिया को उपेक्षित किया ताकि वह निराश होकर उसे छोड़ दे। पर सिया रोज घर आती रही... उसका सम्बल बढ़ाती रही...मुस्कुराते हुए उसकी चिड़चिड़ाहट भी झेलती रही...उसका प्यार इतना कमजोर नहीं था कि एक मामूली तूफान से टूट जाये । फूल पौधे से टूटकर भी खुशबू देना नहीं छोड़ता फिर इंसान अपना कर्तव्य क्यों छोड़े । मानव ..बचपन की वह दौड़ तुम्हें याद है
त्रिटँगी दौड़..जिसमें दोनों पार्टनर का एक - एक पैर बाँध दिया जाता था और तीन पैरों से ही दौड़ना पड़ता था । तुम इस दौड़ में एक्सपर्ट थे ..जिसकी भी टीम में तुम होते वही जीतता था । मैंने भी एक बार तुम्हारे साथ भाग लेकर जीता था.. जैसे तीन पैरों से दौड़ जीते वैसे ही जीवन की दौड़ में भी अवश्य सफल होंगे , मुझे तुम पर पूरा विश्वास है । सिया के इस रामबाण ने मानव के शुष्क होते हृदय पर असर किया था.. बचपन की स्मृतियों का प्रभाव अत्यंत गहरा होता है ..आखिर मानव को झुकना ही पड़ा ।
सिर्फ पाना ही प्रेम नहीं है.. प्रेम खोने - पाने का भय भुला देता है । अपने प्रिय की खुशी ही सच्ची प्रीत है । मानव आज बहुत खुश था , सिया के प्यार के साथ वह अपने आने वाले जीवन की कठिनाइयों से संघर्ष कर लेगा । घनी अंधेरी राह में एक दिए की लौ भी काफी होती है राह दिखाने के लिए.. तभी सिया अपने हाथों में पानी का गिलास और मानव की दवाई लेकर अंदर आई...मानव उसकी ओर प्यार से अपलक देख रहा था...सिया ने अपनी आँखें मूंद ली थी..उसे वही ख्वाब याद आ गया था वह फूलों के बीच बैठी है और उस पर पारिजात के फूल झर रहे हैं ।
स्वरचित ...डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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