भोर लिखूँ , मध्यान्ह लिखूँ .
या सिंदूरी शाम लिखूँ.....
राम लिखूँ , श्याम लिखूँ ,
या दिल पे तेरा नाम लिखूँ...
झील बनूँ , झरना बनूँ ,
या नदी अविराम बनूँ..
स्नेह बनूँ , श्रद्धा बनूँ ,
या प्यार का जाम बनूँ ...
एक पहर , दो पहर नहीं ,
साथ मैं आठों याम रहूँ..
आस बनूँ , विश्वास बनूँ ,
या अनवरत प्रयास बनूँ...
भक्ति करूँ , समर्पण करूँ ,
या खुद को अर्पण करूँ...
चाँद बनूँ , तारे बनूँ ,
या दीप बन जीवन में उजास करूँ...
तितली बनूँ , पंछी बनूँ ,
या तरु बन तेरा आवास बनूँ...
शब्द बनूँ , अर्थ बनूँ ,
या स्नेहिल भाव विचार बनूँ...
दरिया बनूँ , नदिया बनूँ ,
या समंदर विशाल बनूँ...
धूप बनूँ , बारिश बनूँ ,
या धरा की प्यास बनूँ...
शब्द बनूँ , भावार्थ बनूँ ,
या कोमल एहसास बनूँ....
रूप धरूँ कुछ भी पर ,
सदा पिया तेरे साथ रहूँ....
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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