यादें ...और वो भी बचपन की...मन को दूर कहीं उड़ा ले जाती हैं और कुछ देर के लिए अपने वर्तमान को भूलने को मजबूर कर देती हैं । बचपन की यादें होठों पर बरबस मुस्कान ला देती हैं क्योंकि उन पलों में छुपी होती हैं ढेर सारी शरारतें...मस्ती...हुड़दंग । यूँ तो ढेर सारी बातें हैं कहने को पर यादों की पोटली से एक घटना आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ । बात उन दिनों की है जब मेरे पापा जी की पोस्टिंग नारायणपुर में थी । वहाँ मिडिल स्कूल न होने के कारण लगभग एक किलोमीटर दूर नवागांव के स्कूल में पढ़ने जाना पड़ता था । हमारे ग्रुप में बहुत लोग थे तो साइकिल से जाते और खूब मस्ती करते हुए जाते । एक - दूसरे को चिढ़ाते , खिजाते रास्ता कैसे तय होता पता ही नहीं चलता । मुझे किताबें पढ़ने का बहुत शौक था और समाचार पत्र भी नियमित रूप से पढ़ती थी तो उनके बीच मेरा प्रभाव कुछ ज्यादा ही अच्छा था । सभी मेरी बातें ध्यान से सुनते भी थे । एक बार हम शौक में ही पैदल स्कूल गये पर थक गए थे तो लौटते समय हमने तय किया कि लिफ्ट लेकर जायेंगे। कोई गाड़ी आ नहीं रही थी... बस एक ट्रक दिखा , उसे ही रोककर हम पीछे ट्रॉली में बैठ गए ..हम सबको बहुत मजा आ रहा था तभी मुझे समाचार पत्र में पढ़ी एक घटना याद आई और मैंने अपने दोस्तों को बताया कि ऐसे ही एक ट्रक वाला एक लड़की को लिफ्ट के बहाने बिठाकर उसका अपहरण कर लिया था और दूसरे राज्य में ले जाकर बेच दिया । बस , क्या था...मस्ती वाले माहौल में भय व्याप्त हो गया...हालांकि बहुत दूर का सफर नहीं था फिर भी सभी डरने लगे । मुझे भी पछतावा होने लगा कि मैंने उन्हें अभी यह बात क्यों बता दी..हम अपने गाँव पहुँचने ही वाले थे...अपने रुकने के स्थान पर हमने हल्ला मचाया...रोको , रोको...चूंकि ट्रक स्पीड में थी तो कुछ दूर आगे जाकर रुकी लेकिन मेरी एक सहेली डर के मारे कि ट्रक वाला नहीं रोक रहा है ट्रक रुकने के पहले ही कूद गई और उसे सिर पर चोट भी लगी । तब मुझे महसूस हुआ कि लोगों को डराने का गलत असर भी हो सकता है और मानसिक स्थिति सबकी भिन्न - भिन्न होती है इसलिए हम सबके साथ एक समान व्यवहार नहीं कर सकते । पर बाद में उस घटना को याद करके हम सभी खूब हँसे और जो ट्रक से कूद गई थी उसकी खूब खिंचाई भी हुई । अगर ट्रक वाला हमें कहीं ले जाता तो क्या होता? इस विषय पर भी हमने खूब चर्चा की ....हाँ इस घटना के बाद हमें घर से समझाईश मिली कि आते - जाते ऐसा कोई भी रिस्क नहीं लेना है
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Tuesday, 2 April 2019
स्कूल की यादें ( संस्मरण )
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