#आज की नारी कितनी आजाद #
आज की नारी बहुत ही मजबूत बनकर उभरी है और कठिन से कठिन कार्यों को उसने कर दिखाया है । जीवन के सभी क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती स्त्री न सिर्फ आत्मनिर्भर हुई है बल्कि बेबाकी से उसने अपने खिलाफ होते अन्याय के विरूद्ध आवाज मुखर किया है । गलत का विरोध करने की हिम्मत जुटाई है ।
सामाजिक रूढ़ियों से वह आजाद हुई है... गलत परम्पराओं से वह आजाद हुई है... वे सब नियम जो उसे सिर्फ घर की देहरी से बांधकर रखते थे , उन बन्धनों से आजाद हुई है । पर क्या यह सही मायने में आजादी है.. मनचाहा वस्त्र पहनना , मनपसन्द कार्य करना , खाना , घूमना , अभिव्यक्ति तक ही यह आजादी क्यों सिमट कर रह गई है... आज भी " तुम तो चुप ही रहो , तुम क्या जानती हो इसके बारे में , बस , तुम अपना चूल्हा - चौका सम्भालो " के जुमले सुनाई देते हैं । बहुतायत महिलाओं की राय नहीं ली जाती घर के महत्वपूर्ण फैसलों में जबकि वह कामकाजी होते हुए भी घर व बाहर संतुलन बनाये रखती है । आज भी वे आर्थिक मामलों में अपना मुँह बंद ही रखती हैं.. । यहाँ तक कि उनकी तनख्वाह का हिसाब - किताब भी पति ही रखते हैं.. उन्हें अपने खर्च के लिए भी पति से पूछना पड़ता है । पति - पत्नी दोनों
जो भी कमाते हैं घर के लिए ही और सब कुछ दोनों का साझा ही होता है पर बहुत सी स्त्रियों को खर्च करने की आजादी नहीं है । मेरे विचार से आजादी विचारों की होनी चाहिए चाहे वह घरेलू महिला हो या कामकाजी ।
उसे अपने घर के हर मामले में बोलने की आजादी हो
क्योंकि वह अपने घर - परिवार का भला ही सोचती है । कुछ महिलाएं स्वयं अपने - आपको कई प्रकार के बंधनों में बाँध कर रखती हैं.. लोग क्या कहेंगे , बदनामी होगी , तरह - तरह की भ्रांतियाँ ..उन्हें इन बन्धनों से स्वयं को आजाद करना होगा । नारी सुरक्षा आज सबसे बड़ी समस्या है.. अपनों के बीच भी वह सुरक्षित नहीं है । लोलुप निगाहें हर जगह उसका पीछा करती हैं इसलिए आजादी के साथ सुरक्षा को जोड़ना आवश्यक है । आजादी के नाम पर अपनी सुरक्षा को दांव पर नहीं लगाया जा सकता ।
कुछ देह - प्रदर्शन , नशा करने , देर रात तक घूमने को आजादी का पर्याय मानती हैं पर यह सही नहीं है । आजादी का अर्थ उद्दंड , अमर्यादित होना कतई नहीं है ..अपनी सीमाओं को समझते हुए , स्व - अनुशासन रखते हुए परिवार व समाज से मिली आजादी का उपयोग होना चाहिए ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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