Tuesday, 9 April 2019

आलेख

 

# दो औरतें कभी दोस्त  नहीं हो सकतीं #

आज जब  नारी विकास के चरम पर पहुँच गई हैं , उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में अपनी योग्यता सिद्ध की है । ट्रेन के पायलट से लेकर सेना , पुलिस , राजनीति , शिक्षा , चिकित्सा , सेवा प्रत्येक क्षेत्र में उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है । नारी सुरक्षा को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं और
सार्वभौमिक सोच यही है कि सभी क्षेत्रों में स्त्री की उपलब्धता ही इसका सर्वश्रेष्ठ समाधान है । हम यदि किसी काम से जाते हैं तो वहाँ किसी स्त्री की उपस्थिति हमें सहज कर देती है और यही अपेक्षा की जाती है कि उनके द्वारा हमें यथोचित सहयोग प्राप्त होगा । पर काश ऐसा होता ? जितना पुरूष  वर्ग  में  महिलाओं की सहयोग की भावना होती  है  उतना एक महिला के द्वारा अपने ही वर्ग के लिए सहानुभूति या सहयोग की भावना नहीं मिलती । हर बात हर किसी के लिए लागू नहीं होती क्योंकि कुछ लोग इस धारणा के विपरीत बहुत ही सहयोगी स्वभाव के होते हैं ...पर अधिकांश लोगों के अनुभवों के कारण लोगों की किसी के बारे में धारणा बनती है । मैं एक बार कृषि विभाग कार्यालय में काम से गई थी तो वहाँ उपस्थित एक महिला क्लर्क के पास ही सबसे पहले गई और मुझे जो जानकारी चाहिए थी उसके बारे में बात की.. लेकिन अफ़सोस उस महिला ने मुझे कोई सहयोग नहीं किया ..यहाँ तक कि ठीक से बात भी नहीं की । फिर उसी विभाग के एक सज्जन ने मेरा मार्गदर्शन किया और मेरा काम भी पूरा कराया । यह सिर्फ एक ही विभाग की बात नहीं है कई जगह ऐसे लोग दिखते हैं । किसी महिला की गाड़ी खराब होने पर कितनी ही महिलायें गुजर जाती हैं लेकिन  वहाँ  कोई नहीं रुकती। वहाँ रुकने और मदद करनेवालों में पुरुषों का प्रतिशत ही अधिक होता है । प्रतियोगिता , अहम , जिद , हीन भावना  , स्वार्थ इत्यादि कई कारण हैं जिनके कारण एक औरत दूसरी औरत की दोस्त नहीं बन सकती । हालाँकि इस धारणा को झूठा साबित कर कुछ दोस्ती निभाती भी हैं पर ऐसा बहुतायत में होगा तो ही हम लोगों की धारणा को बदल पायेंगे । औरतों के बीच बहनापा शायद बहुत से अन्याय , शोषण व अपराधों को कम करने में मददगार भी साबित होगा । इति शुभम ।

स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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