मन ही मन घुटने से बेहतर , गुनगुनाना चाहिए ।
लाख गम हो जिंदगी में , फिर भी मुस्कुराना चाहिए ।
राहे जिंदगानी बड़ी मुश्किल है तू अकेला न चल ,
मुसीबतों में साथ दे , ऐसा हमसफ़र बनाना चाहिए ।
महफ़ूज रखती हैं हमें तूफान और बारिश से..
मजबूत रखनी हो जो दीवारें ,नमी से बचाना चाहिए ।
वक्त रेत की तरह मुट्ठी से कहीं फिसल न जाये ,
व्यस्तताओं में भी खुशियों के पल चुराना चाहिए ।
अर्जुन की तरह एकाग्र व कर्तव्यनिष्ठ बने रहना ,
भेद सके लक्ष्य को अचूक वो निशाना चाहिए ।
जिंदगी की राहों में गुलों के संग खार भी मिलेंगे ,
इन सबको साथ लेकर प्यार से निभाना चाहिए ।
मिटा कर अंधेरा हर कोने में उजाला भर दे ।
मन में ' दीक्षा ' ज्ञान की ज्योति जलाना चाहिए।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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