Saturday, 27 April 2019

गज़ल

तेरी खातिर संवरती  हूँ  मैं शृंगार करती हूँ...
मरती हूँ तुम पर , तुम्हीं से  प्यार करती हूँ..।

घड़ी भर साथ पाने के जतन हजार करती हूँ..
मेरे साथी तन मन धन तुझपे वार करती हूँ...।

सुनहरे ख्वाब जो देखे हैं हम दोनों ..ने मिलकर...
हकीकत में उन ख्वाबों को साकार करती हूँ..।

न जाने कब आ जाये घड़ी  पिया.. मिलन की..
जागकर सारी रात मैं इंतज़ार करती हूँ..।

राह ए वफ़ा  में कहीं न मात खा जाऊं..
 तुम्हें आजमाने से सदा इन्कार करती हूँ..।

मुरझा न जा...ये कहीं  इश्क ए चमन मेरा ..
अश्कों से सदा अपने  इसे गुलजार करती हूँ ।

दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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