जीवन में तो गम बहुत हैं...
फिर भी हँसकर जी लिया करो ।
खामोशी की इन दरारों को...
अपनी बातों से सी लिया करो ।
आते हैं कभी जो बेबसी के पल...
घूँट जहर भरा पी लिया करो।
छँट जायेगी धुंध धूप आने पर..
चुपचाप कुछ दूर चल लिया करो ।
कब तक डरायेंगे तुम्हें ये अंधेरे...
हाथों में जुगनू भर लिया करो ।
खुशियों का बसेरा तो अंतर्मन में है ...
कभी - कभी खुद से मिल लिया करो ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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