Thursday, 25 April 2019

दीर्घायु भव ( लघुकथा )

सुमन को  उसकी दीदी फोन पर बहु रमा की शिकायतें
बताती रहती थी कि  रमा ने उसके खाने - पीने में कटौती कर रखी  है , उसके खाने पर  खूब पाबंदी लगाती है । उससे अधिक उन्हें तकलीफ इस बात की थी कि बेटा पंकज उसे कुछ नहीं  कहता  ।
   सुमन स्वयं जाकर देखना चाहती थी कि इसमें कितनी सच्चाई है क्योंकि पंकज की बहु रमा तो समझदार लगी थी । दीदी के घर रहकर उसने महसूस किया कि रमा अपनी सास का खूब ख्याल रखती है..डॉक्टर के मना करने के कारण उन्हें तेल , मिर्च , मसाले वाली चीजें खाने नहीं देती..उनके लिए   सुपाच्य खिचड़ी बनाती है । दीदी के लिए यह सब इंतजाम करने के लिए उसे अतिरिक्त समय देना पड़ता है पर दीदी यह सब क्यों नहीं समझती । दीदी के झल्लाने का दोनों पति - पत्नी बुरा भी नहीं मानते, बस मुस्कुरा देते हैं.. सुमन के पूछने पर रमा ने बस इतना ही कहा - जिंदगी भर बड़े हमें " दीर्घायु भव " का आशीर्वाद देते हैं ...अब हमारी बारी है उन्हें दीर्घायु बनाये रखने का प्रयास करने की ..ताकि हमारे सिर पर उनकी स्नेह छाया बनी रहे ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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