Tuesday, 30 April 2019

दर्पण

कहते हैं चेहरा ,
दर्पण होता है मन का
कह देता है सारी बात ।
क्यों नहीं जान पाते हम ,
किसी के मन में क्या छुपा ।
पत्नी क्यों नहीं देख पाती
पति के दिल में टूटते ,
विश्वास के तार ।
छली क्यों जाती नवयौवना
प्रेमी की मीठी बातों में ।
लोग क्यों फँस जाते ,
झूठ के बुने जालों में  ।
क्यों उलझ जाते हैं ,
जमाने की फरेबी बातों में ।
भटक जाते युवा ,
दोस्ती की चाह में ।
दर्पण झूठ क्यों बोले
राज दिलों के न खोले ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
     दुर्ग , छत्तीसगढ़

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