Saturday, 6 April 2019

बदलते रिश्ते ( लघुकथा )

उमा के पति का  पिछले कई महीनों से इलाज चल रहा था । इसमें उनकी  सारी जमापूंजी खर्च हो गई थी । मजबूरी में अपने जेठ , ननद , भाई सबके पास मदद के लिए गई...सबने अपनी असमर्थता जाहिर की । उसकी विपरीत परिस्थितियों के बारे में जानकारी होने पर उसके दोस्तों ने बिना कहे मिलकर पूरी राशि जुटा दी ..उमा के लिए यह अप्रत्याशित था...जिंदगी भर जिन्हें आदर दिया , जब जो भी आवश्यकता पड़ी , उनका साथ दिया वो रिश्तेदार वक्त पर काम नहीं आये जबकि दोस्तों के लिए कभी कुछ विशेष नहीं किया ..उनसे कभी कोई अपेक्षा नहीं रखी.. उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभाई थी । वक्त ने उसे सच्चे रिश्तों का मोल समझा दिया था ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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