इशिता प्रेम - विवाह कर इस घर में आई थी...अपने मन की न कर पाने के कारण सासु माँ नाराज थी..इकलौते बेटे से तो कुछ कह न पाई पर सारी झल्लाहट व आक्रोश इशिता पर फूटने लगा । अपनी मर्यादा में रहकर इशिता मुस्कुराती हुई अपना फर्ज निभाती रही , कभी उन्हें पलट कर जवाब नहीं दिया..समझती थी बेटा माँ के दिल के करीब होता है... अचानक उस पर पत्नी का अधिकार जताना उन्हें कैसा महसूस होता होगा । उनके रिश्ते के बीच वह कभी नहीं आई..हाँ , अपनी कुछ तरकीबें लगाकर उनकी प्रगाढ़ता बढ़ाया ही । उनकी पसन्द का ध्यान रखना , उन्हें हमेशा सम्मान देना..कोशिशों से तो पत्थर से भी मीठे जल का स्त्रोत फूट पड़ता है फिर वह तो इंसान थी ...आखिर उनका दिल पिघल गया और उन्होंने बहु को भी अपनी ममता के आगोश में समेट लिया ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Tuesday, 16 April 2019
मर्यादा ( लघुकथा )
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