उस दिन एक परिचित के यहाँ गृह - प्रवेश की पूजा में जाना हुआ । उन्होंने अपने घर के बाहर बड़े - बड़े अक्षरों में अपनी माँ का नाम लिखवाया था." माँ श्रीमती.......की स्मृति में " मातृभक्ति का उनका यह दिखावा मन को आहत कर गया । जब तक वह जीवित थीं खाने को तरस गईं । ऐसा नहीं है कि बेटे की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है... पर बहु के देर से उठने और देर से खाना बनाने के कारण बेचारी भूख से बेहाल हो उठती... वर्षों से पति व बच्चों की ड्यूटी व स्कूल जाने की दिनचर्या के कारण सुबह जल्दी खाना बनाने व खाने की आदत जो पड़ गई थी... अचानक कैसे सुधर जाती ।
चलो...घर के बाहर लिखे माँ के नाम को प्रतिदिन देखकर बेटे को अपराधबोध तो हो कि वो माँ की
सुविधानुसार अपने - आपको बदल नहीं पाये ।
स्वरचित - डॉ . दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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