रश्मि एक स्कूल में व्याख्याता थी । उसके स्टॉफ में बहुत ही सहयोगपूर्ण और सहज वातावरण था । सभी तल्लीनता से अपना कार्य करते...कोई किसी से तुलना नहीं करता था पर जब से एक नई मैडम वीणा आई है... पता नहीं कहाँ से ईर्ष्या , निंदा , झूठ का आवरण चढ़ने लगा । उसके द्वारा बातों को बढ़ा - चढ़ा कर इधर - उधर करने से लोगों के बीच गलतफहमी पैदा होने लगी ...गुटबाजी होने लगी और जातिवाद का जहर फैलने लगा । आज रश्मि बचपन में पढ़े उस कहावत को चरितार्थ होते देख रही थी--" एक सड़ी मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है " ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Saturday, 2 March 2019
सड़ी मछली ( लघुकथा )
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