Monday, 4 March 2019

अनुपयोगी ( लघुकथा )

सुयश की पत्नी मेघा न अपने घर की देखभाल करती है और न ही किसी काम में हाथ बटाती है । बस दिन भर अपने कमरे में पड़ी आराम करती  रहती है । उसेअपने मायके के अलावा  न कहीं आना -  जाना पसंद है न रिश्तेदारों से मिलना  । उसे बस शॉपिंग करना , बाहर खाना व  सोना ही पसन्द है । अपने इस व्यवहार से उसने स्वयं को सबकी नजरों में उपेक्षित
सा कर लिया है क्योंकि अब कोई भी उसे नहीं पूछता कि वह कहाँ है , न ही उससे मिलता । मुझे उसे देखकर
स्टोर रूम में पड़े उन पुराने सामानों की याद आती है जिन्हें कभी उपयोग में भी लाया नहीं जाता और कभी काम आ जायेगा सोचकर फेंका भी नहीं जाता ।

स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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