अरे ! सुना सिया का चक्कर चल रहा है किसी से ..सुनते ही सभी सहेलियाँ रोमा को घेर खड़ी हो गई थी । बस फिर तो सभी ने मजे ले लेके यह वर्णन सुना । किसी ने भी इस समाचार के सही होने की खोज नहीं की । यहाँ से वहाँ इस बात का प्रसार करती रही और निर्दोष सिया की गृहस्थी खतरे में पड़ गई । स्त्रियाँ खुद क्यों विश्वास नहीं कर पाती स्त्री पर । किसी स्त्री पर उंगली उठाने में उनका अपना महकमा ही आगे रहता है पता नहीं क्यों ? शायद जलन या झुँझलाहट इस बात की कि सामनेवाली जो कार्य कर रही है वह नहीं कर पा रही । उन्हें वह अवसर नहीं मिल पाया आगे बढ़ने का या उन्होंने स्वयं को मिले अवसर का लाभ नहीं उठाया । अभी उस दिन किसी विभाग में कार्यरत एक महिला के बारे में चर्चा हो रही थी कि उसका किसी के साथ चक्कर चल रहा है तो एक मैडम ने झट फैसला सुना दिया - " जितनी औरतें ऑफिस में काम करती हैं सबके सब ऐसी होती हैं ।" किसी एक स्त्री की वजह से आप पूरी कौम को चरित्रहीन कैसे साबित कर सकती हैं ? बोलते वक्त लोग यह भूल जाते हैं कि उनके भी कई अपने कहीं न कहीं काम कर रहे हैं । अपनी गरिमा को बनाये रखना आपके अपने हाथ में है , आप स्वयं अपने वर्ग की बेइज्जती न करें । आप कामकाजी हैं तो दूसरी कामकाजी महिलाओं की परिस्थितियों को बेहतर समझ सकती हैं ।घर से बाहर निकल कर कार्य करने वाली स्त्री के सामने न जाने कितनी चुनौतियों रहती हैं । उन्हें घर - बाहर के कामों में सामंजस्य स्थापित करने में कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है ,कैसे - कैसे लोगों को झेलना पड़ता है ,जरा इस बात को समझें । कार्यालय में अपना सहयोगी चुनना आपके अपने हाथ में नहीं होता । परन्तु अपने गरिमा बनाये रखना भी स्त्रियों को आना चाहिए ।कोई कहता है कौआ कान ले गया तो आप उसके पीछे मत भागिए । किसी अफवाह को फैलाने में आप योगदान मत दीजिए । स्त्री विरोधी माहौल को हवा देंगी तो आग की लपटें फैलेंगी और हो सकता है कल इससे आपका घर ही जल जाए । दूसरों के नजरिये से भी परिस्थितियों को देखने का प्रयास करें , किसी महिला कामकाजी को आप सहयोग नहीं दे पा रहे हैं कोई बात नहीं , सामान्यतः पुरूष साथी बेहतर मददगार साबित होते हैं । जब पुरूष साथी यह कार्य करता है तो उन पर कोई इल्जाम न लगाइये , उन पर शक न कीजिए क्योंकि हो सकता है कल आपको भी इसी स्थिति का सामना करना पड़े । एक स्त्री के लिए अधिक आसान है स्त्री को समझना क्योंकि वह हर उस दर्द , अनुभव , अपेक्षाओं , आकांक्षाओं की साझेदार है जो उसने स्वयं महसूस किया है । तो ऐसा क्यों न हो कि जब भी उसे सहयोग , मार्गदर्शन की आवश्यकता हो तो कोई न कोई महिला उसके लिए खड़ी रहे चाहे वह उसकी कोई रिश्तेदार , सखी , बहन हो चाहे सिर्फ एक स्त्री हो । कई बार अकेले में घबराते मन को वहाँ अचानक उपस्थित महिला सम्बल प्रदान कर जाती है , किसी अनजान राह पर चलते हुए किसी अपरिचित स्त्री का साथ भी सुकून दे जाता है तो क्यों न प्रत्येक स्त्री इस आनन्द का अनुभव करे किसी अपनी का सुकून बनकर ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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