Thursday, 12 December 2019

मुक्तक

हर किसी के भीतर कुछ न कुछ अच्छा रहता है ,
ऊपर से पकने लगे पर अन्दर से कच्चा रहता है ।
मचलने  लगता है , रो देता है  कभी - कभी  _
जिस्म की दहलीज के भीतर एक बच्चा रहता है ।।

मुश्किलों के आगे न शीश झुकाना है ,
दूर बहुत दूर अभी चलकर जाना है ।
थककर न बैठ ओ राह के मुसाफिर_
बाधाओं को पारकर मंजिल को पाना है ।।

अच्छी सोच बनाती तेज कलम की धार ,
इनकी निर्भय वाणी से डरता संसार ।
समाज में परिवर्तन के वाहक  हैं ये_
नव - निर्माण को राह दिखाते कलमकार ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment