ऊपर से पकने लगे पर अन्दर से कच्चा रहता है ।
मचलने लगता है , रो देता है कभी - कभी _
जिस्म की दहलीज के भीतर एक बच्चा रहता है ।।
मुश्किलों के आगे न शीश झुकाना है ,
दूर बहुत दूर अभी चलकर जाना है ।
थककर न बैठ ओ राह के मुसाफिर_
बाधाओं को पारकर मंजिल को पाना है ।।
अच्छी सोच बनाती तेज कलम की धार ,
इनकी निर्भय वाणी से डरता संसार ।
समाज में परिवर्तन के वाहक हैं ये_
नव - निर्माण को राह दिखाते कलमकार ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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