Friday, 6 December 2019

अस्तित्व ( लघुकथा )

आज  रमा  के नये शोरूम का शुभारंभ था , एक सामान्य घरेलू महिला का सिलाई - कढाई का शौक बुटीक से बढ़कर शो रूम तक  पहुँच गया था , यह इतना आसान नहीं था । जब रमा ने अपने पति महेश से काम करने की इच्छा जताई तो उसने तल्ख स्वर में उस पर व्यंग्य किया था - " इतनी कम पढ़ी - लिखी होकर क्या काम करोगी तुम ? तुम न चूल्हे - चौके तक ही ठीक हो ।" पति की बात चुभ गई थी रमा को , बचपन से ही सिलाई - कढाई से बेहद लगाव था उसे। कठिन से कठिन डिज़ाइन देखकर ही बना लेती । पति की कटुक्ति को चुनौती के रूप में लिया था उसने और घर के कामों के साथ - साथ सिलाई का काम शुरू कर दिया । मोहल्ले की कुछ औरतें उससे सीखने भी आने लगीं । उसकी मेहनत रंग लाई और लोगों को उसका काम पसन्द आने लगा । जगह कम पड़ने लगी और दुकान किराये पर लेनी पड़ी । आज उसकी आय पति से अधिक है, सबसे बड़े सन्तोष की बात है कि उसने अपने जैसी कई घरेलू महिलाओं के सपनों को पंख दिये और उन्हें भी उनके अस्तित्व का बोध कराया । महेश ने तो पहले ही उसकी इच्छाशक्ति के आगे घुटने टेक दिए थे और अपने कहे शब्द वापस ले लिए थे ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे 
दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment