कुछ सोचा न समझा बस तुझसे ही प्यार किया ।
मन में तेरी छबि अंकित , सोच में बस तू ही तू ,
सामने जब तुम आ जाते ,धड़कता मेरा जिया ।
बातें तेरी अच्छी लगती मिलने को तड़पे दिल ,
उड़ गई नींदें रातों की सुकून तूने छीन लिया ।
इंतजार में कटते दिन करवटों में कटी रातें ,
प्रेम किया मैंने तुमने विरह का उपहार दिया ।
चातक को सुकून मिलता है चाँद को देखकर ,
"दीक्षा" आस के धागे से प्रेम का चूनर सिया ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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