उस दिन पचास की दहलीज पार कर चुकी रमा बुआ
ने अपने एक परिचित के छः वर्षीय बेटे को वात्सल्य
से अपनी गोद में लेकर प्यार करके क्या गुनाह कर दिया
...बच्चा अचानक बेड टच , बेड टच चिल्लाने लगा...
कुछ पल के लिए सब स्तम्भित रह गए , फिर हँस पड़े ।
शायद स्कूल में आज ही उसे " गुड टच , बेड टच " की
जानकारी दी गई होगी । स्वाभाविक प्रतिक्रिया वश हम
हँस पड़े परन्तु वास्तव में यह एक गम्भीर चिंतन का विषय है ।
आजकल ऐसी कई घटनाएं घट रही हैं जिनके कारण हमें सतर्कता के लिए बच्चों को ऐसी जानकारियाँ देनी पड़ रही हैं परंतु क्या उस छः वर्ष के
बच्चे में इतनी समझ है कि वह इन सब बातों का मतलब समझ सके । क्या हम उनसे उनकी उम्र से अधिक अपेक्षा नहीं कर रहे ।
जिस उम्र में मन निश्छल होता है ...कोई भेदभाव
छोटा - बड़ा , अपना - पराया नहीं होता ...उन्हें हम लोगों पर अविश्वास करना सिखा रहे हैं... किसी के बुलाने पर उनके साथ मत जाना ...किसी भी अनजान
अंकल से चॉकलेट मत लेना , कोई कुछ खाने को कहे
तो मत खाना । अपने रिश्तेदारों पर विश्वास करने के लिये भी हम उन्हें नही कह सकते । कोई बहुत घनिष्ठ हैं उन्हीं के साथ रहना , उनकी बात मानना । बच्चे को हम ही भेद करना सिखा रहे हैं , हालांकि यह सब उनकी सुरक्षा के लिए ही है... पर बच्चे के लिए तो सही नहीं है । हम स्वयं ही बच्चे के मन को संकीर्ण बना रहे हैं ..भय के कारण उन्हें बाहर खेलने जाने से रोक रहे हैं , उनकी सार्वजनिक जिंदगी पर पाबंदी लगा रहे हैं ...फिर कैसे होगा उनके व्यक्तित्व का चहुमुंखी विकास , जब हम उन्हें उड़ने को खुला आसमान नहीं दे पा रहे ।
पहले की बातें याद आती हैं जब किसी सफर में मेरा
बच्चा पूरे डिब्बे के लोगो के आकर्षण का केंद्र हुआ करता था । कोई उसे हँसा रहा है , कोई जबरन बुलवा
कर उसकी तोतली जुबान के आनन्द ले रहा है , बड़ा ही अपनापन भरा माहौल बन जाता था , प्रत्येक सफर की एक मधुर याद रहती थी , कई बार सफर में ही प्रगाढ़ रिश्ते पनप जाते थे।
कहीं भी कोई प्यारा बच्चा दिखे तो उसे पुचकारने , दुलारने या चॉकलेट , बिस्किट देने वाले कितने आत्मीय जन मिल जाते ..माता - पिता को पता ही नहीं चलता कि कब मंजिल आ गई ।न जाने ऐसे कितने खूबसूरत एहसासों से दूर हो जाएंगे ये बच्चे क्योकि अब तो डर के मारे किसी बच्चे को गोद में लेने की हिम्मत ही नहीं होती , क्या पता उसके माता - पिता यह न समझ ले कि कही कोई अपहरण कर्ता तो नहीं ..इस सतर्कता के चलते वे अपने बच्चे को किसी और को गोद में लेने ही नही देते ।
किसी को चॉकलेट , बिस्किट भी ऑफर नहीं कर सकते कि वे यह न सोंचे कि इसमें कहीं बेहोशी की दवा तो नही मिला दी है इसने ...ऐसी घटनायें हुई हैं इसलिए
समाज में असुरक्षा की भावना बढ़ी है । बच्चों के यौन-
शोषण , अपहरण , चोरी इत्यादि की बढ़ती घटनाओं
ने भय , शक और अविश्वास को जन्म दिया है... जिसका सीधा असर बच्चों के पालन - पोषण पर पड़ता
है पर हम यह भी सोंचे कि ये कैसा समाज दे रहे हैं हम उन्हें । स्वयं ही हम उन्हें कुण्ठा व तनाव , डर , अविश्वास सिखा रहे हैं , क्या यह उनके लिये सही है..
उनकी सुरक्षा के लिए किये जाने वाले हमारे प्रयास कहीं
उनके विकास में बाधक न बनें ...सोचना होगा हमें । उनके मन में कई बातें उठेंगी , कई सवाल खड़े होंगे ऐसा क्यों .....? क्या हमारे पास उनके सवालों के जवाब हैं ? क्या आपके पास उनके सवालों के जवाब हैं ?
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़ 💐💐
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Thursday, 2 November 2017
क्या आपके पास जवाब है ?
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