रूठे - रूठे सरकार मनाएं कैसे ।
संविलियन के बिना वापस जाएं कैसे ।।
शिक्षा का महादान किया है ,
फिर भी न शिक्षक का नाम दिया है।
शोषित और अपमानित होकर ,
जहर भरा ये जाम पिया है ।
मन की व्यथा हम बताएं कैसे ।रूठे।
जब - जब जो आदेश मिला है ,
हमने काम वो पूरा किया है ।
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया ,
महंगाई ने परेशान किया है ।
क्या - क्या है तकलीफें बताएं कैसे।।रूठे।।
राह हमारी रोककर खड़े हैं
कानों में तेल डाल कर पड़े हैं।
आस्तीन में ये साँप पला है ,
वादा कर करके छला है ।
तेरे वादे तुम्हें याद दिलाये कैसे ।।रूठे ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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