Sunday, 18 March 2018

त्वरित न्याय ( कहानी )

न्याय पाने के लिए इंसान  अदालत के दरवाजे  खटखटाते हुए मर जाता है पर उसे न्याय नहीं मिलता
पर एक अदालत ऐसी है जहाँ  न्याय मिलता ही है वह है ईश्वर की अदालत....पर ऐसा त्वरित न्याय ..सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं । घटना आज से कई वर्ष
पहले की है ...बड़े ही अरमानों के साथ  शिवनारायण सिंह ने अपनी एकलौती लाडली बिटिया  सुमन की शादी की थी ...रामपुर  के  रंजीत सिंह के बेटे राजीव से । उच्च शिक्षित  राजीव  शासन  में अच्छे पद पर था  ..एकलौता लड़का घर से सम्पन्न । पिता भी अच्छे पद पर थे किसी बात की कमी नहीं थी लेकिन कहा गया है ना लालच का घड़ा कभी नहीं भरता । जिसके पास जितना अधिक धन रहता है वह उसे और बढाने के फेर  में रहता है ।  सब कुछ होते हुए भी राजीव की शादी के लिए लड़की के साथ सम्पत्ति की चाह रखने वाले रंजीत सिंह  न जाने कितनी लड़कियों को रिजेक्ट कर चुके थे ।  शिवनारायण सिंह ने अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव दिया  तो  सुमन की शिक्षा व सुंदरता ने तुरंत  प्रभावित कर दिया था राजीव को , परन्तु उसके पिता जी ने  तिलक में  दस लाख की माँग कर दी ...ऊपर से शादी का खर्च , सुमन तैयार नहीं थी पर पिता की जिद और खुशी के लिए वह मान गई । शादी का खर्च , ऊपर से दस लाख नगद , जैसे - तैसे पिता ने व्यवस्था की ।
      शादी के बाद एक वर्ष वे खुशी - खुशी रहे जब तक किसी न किसी रस्म के बहाने कुछ न कुछ उपहार आते रहे ... उसके बाद  शिकायतों , माँगों का दौर  शुरू हो गया । सब कुछ होते हुए भी लोग इतने लोभी कैसे हो जाते है पता नहीं । थोड़ी सी बारिश जैसे धरती की प्यास को और बढ़ा देती है वैसे ही  सुमन के ससुराल वालों का लालच बढ़ रहा था । माता - पिता तो लोभी थे ही पर सुमन को पति  का साथ भी नहीं मिला । वह भी अपने मम्मी पापा के सुर में सुर मिलाता । ससुराल में कितनी भी तकलीफ मिले पर यदि पति का प्यार मिले तो स्त्री  हर तकलीफ  सह लेती है , पति साथ न दे तो वह कहाँ जाये , किसके सहारे जीवन व्यतीत करे ।बेचारी सुमन चुपचाप सब कुछ सहती रही ..उसकी हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि असहाय पिता को उनकी माँगों  के बारे में बताये ...उनकी स्थिति से वह भली - भांति वाकिफ थी और यह भी जानती थी कि वे अपनी बेटी की खुशी के लिए अपना घर - बार भी बेच देंगे । तनाव बढ़ता जा रहा था ..अंत में उसने यह फैसला लिया ..उसके द्वारा पिता के घर से रुपये लाने से साफ इंकार करने पर तिलमिला गये थे वे...उसे छोड़ देने  और दूसरी शादी करने की धमकी तो वे कई बार दे चुके थे ...पर इतना बड़ा कदम उठा लेंगे , उसने यह नहीं सोचा था ।
     उस दिन सुमन तैयार होकर रसोई में खाना बना रही थी.. किसी काम से स्टोर रूम में गई थी कि  राजीव ने पीछे से आकर उसके दोनों हाथ पकड़ लिये और उसे पीटने लगे ..उसकी माँ भी उसका साथ देने लगी ..अचानक उसके ससुर ने कनस्तर में रखा मिट्टी का तेल उसके  ऊपर उड़ेल दिया और राजीव ..अग्नि के समक्ष जिसने उसके साथ सात फेरे लिए थे , जिसका हाथ थाम वह अपने बाबुल का आँगन
छोड़ कर  आई थी , उसका पति परमेश्वर ....उसने माचिस की तीली जला कर उस पर उछाल दी...सुमन जो तेल की दो बूँद छिटकने से कई दिन तक कराहती थी , आज उस भीषण अग्नि की ज्वाला में घिरी हुई तड़प रही थी और  वे हँस रहे थे । उस दर्दनाक स्थिति में अपने माता - पिता को  याद करने के बाद उसने ईश्वर से यही प्रार्थना  की ...हे भगवान ...इन  पिशाचों को कड़ा दण्ड देना , इससे पहले कि फिर मेरे बाद कोई और लड़की इनके लालच की शिकार हो जाये ।
      सुमन के बेदम होकर गिर जाने के बाद उसके ससुराल वाले सभी घर  के बाहर आकर चिल्लाने लगे , रोने लगे कि हाय ...बेटी ये तूने क्या किया , तेरे मन में क्या था हमें कुछ तो बताती । पड़ोसी जमा हो गये , फायर ब्रिगेड को फोन किया गया । तुरंत फायर ब्रिगेड वाले आये ...अभी एक ही कमरे में आग लगी थी जो धीरे - धीरे फैल रही थी । फायर ब्रिगेड के दो व्यक्ति घर के अंदर जाकर वस्तुस्थिति  देखकर आये  और बाहर आकर पाइप फैलाने लगे तभी पिता - पुत्र को न जाने क्या सूझी कि वे अंदर घुसे शायद वे अपनी तसल्ली करना चाहते थे कि सच में सुमन मर गई है या नहीं ...उनके भीतर घुसते ही जोर का धमाका हुआ और दोनों के चिथड़े उड़ गए थे ...लोगों को कुछ समझ नहीं आया क्या हुआ क्योंकि पलक झपकते ही यह घटना घट चुकी थी...बाद में कारण मालूम हुआ कि जिस कमरे में आग लगी थी वहाँ गैस का सिलेंडर रखा हुआ था जो धीरे - धीरे गर्म हो रहा होगा और तभी फटा जब वे दोनों पिता - पुत्र अंदर घुसे ..उनके अलावा और किसी को भी कोई चोट नहीं आई ...हाँ , बाहर खड़ी राजीव की माँ  पागल हो गई थी  और अपनी शेष जिंदगी उसने पागलखाने में बिताई । उस ईश्वर ने सुमन की प्रार्थना सुन ली थी और अपना फैसला तुरंत सुना दिया था ।

स्वरचित -- डॉ . दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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