Tuesday, 6 March 2018

प्राइस टैग ( लघुकथा )

शर्मा आंटी आज जमीन पर लेटी हुई थी ...लाखों की सम्पत्ति होते हुए भी...महंगे कारपेट्स , नक्काशीदार पलंग ...वास्तुकला की  बेजोड़ कलाकृतियाँ ...जिन पर
वह अभिमान करती रहीं जिंदगी भर ... मृत्यु के बाद इनका क्या मोल  ? इंसान का मोल समझा नहीं कभी उन्होंने ।
   उनसे किसी भी चीज के बारे में बात करने पर उसका अंत उस वस्तु की कीमत पर ही होता था । सस्ती चीजें लेने वालों को बड़ी हिकारत भरी नजरों से देखती थी वो ...और अपनी हर चीज का प्राइस बताना नहीं भूलती थी ।
    अधिकांश लोग कन्नी काटने लगे थे उनसे ...सामने पड़ने से बचते थे ताकि उनके सामने  न पड़कर अपने - आपको अपमानित होने से बचा लें । सब चीजों के प्राइस टैग देखती रहीं ...काश जिंदगी का प्राइस टैग भी देख लेतीं ...। जब कुछ यहीं छोड़कर जाना है तो अहंकार किस बात का । बहुमूल्य जीवन के आगे भौतिक वस्तुओं की क्या कीमत ?

स्वरचित --- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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