रिश्ते सामाजिक संरचना की रीढ़ हैं.. कुछ रिश्ते हमें जन्म से प्राप्त होते हैं और कुछ हम अपने व्यवहार से निर्मित करते हैं।इनका हमारे जीवन में कितना महत्व है यह सभी जानते हैं ।समय के साथ रिश्तों के अर्थ बदल रहे हैं.. आधुनिक सुविधाओं से भरे हमारे जीवन में बदलाव आ गया है...तकनीकी के विकास ने हमारे रहन - सहन , विचार , जीवन शैली को प्रभावित किया है । हम कितनी भी तरक्की कर जायें रिश्ते हमारे लिये सदैव महत्वपूर्ण रहेंगे । पर अब परम्परा गत सोच से इतर रिश्तों की परिभाषा बदलनी होगी ..बदल रही है..सास - बहू के रिश्तों में अब संकोच की जगह खुलेपन ने ले लिया है क्योंकि नौकरी करती बहुओं को सास के सहयोग की आवश्यकता है बिना उनके सहयोग के वह परिवार और नौकरी को नहीं सम्भाल सकती । वह सास को माँ के समान आदर तो देती ही है पर उनमें एक दोस्त भी ढूँढती है । आज आपको ऐसी सासें भी देखने को मिल जाएंगी और ऐसा होना भी चाहिये.. समस्त रुढियों को भुलाकर जब आपने उन्हें नौकरी करने की अनुमति दे दी तो उनकी समस्याओं के प्रति भी संवेदनशील होना होगा । कितना अच्छा लगता है जब कोई बहू कहती है कि मेरी सास ने बच्चे सम्भाले तब मैं यह काम कर पाई । ननद और भाभी का रिश्ता भी सामंजस्य की माँग करता है ..ननद यदि भाभी को सम्मान दे तो निश्चय ही भाभी का भरपूर दुलार उसे मिलेगा...ननदों की रुढिगत छबि जो अपने माता - पिता को भाभी के खिलाफ भड़काती रहती है , वह भी बदलनी चाहिये क्योंकि कल उसे भी यही परिस्थिति देखने को मिल सकती है। ननद , भाभी का रिश्ता यदि मधुर हो तो परिवार में शांति बनी रहती है क्योंकि भाई - बहन का रिश्ता अटूट है और जीवन भर आपको साथ रहना है तो कड़वाहट कैसी ।ननदें ही हैं जो भाभी को घर में उचित स्थान दिला सकती हैं , उनके साथ होने वाले भेदभाव या अन्याय का विरोध कर सकती हैं । देवरानी और जेठानी के रिश्ते में भी बदलाव दिख रहे हैं.. कई देवरानी - जेठानी की जोड़ी मैने देखी जो परस्पर प्रेम व समझदारी के साथ रह रहे हैं । इस रिश्ते में यदि मिठास आ जाये तो क्या कहने । उम्र व अनुभव में बड़ी जेठानी कई समस्याओं को चुटकी बजाते ही सुलझा देती है , टूटे दिलों के तार जोड़ देती है और देवरानी की खूबियों का पूरा लाभ लेती है ।ससुराल में एक छोटी बहन भी उसे मिल जाती है जो कई परिस्थितियों में बड़ी बहन का साथ निभाती है । दोस्ती का रिश्ता भी बहुत प्यारा होता है पर सीमाओं का ध्यान भी रखना आवश्यक होता है । एक - दूसरे की उम्मीदों पर खरा उतरना आवश्यक होता है इस रिश्ते को निभाने के लिए ।एक दूसरे पर विश्वास बनाये रखना , एक दूसरे की तकलीफों को समझना जरूरी है तभी दोस्ती स्थायी बन सकती है । सारे रिश्तों को निभाने की पहली शर्त है दूसरों से अपेक्षा कम रखना और अपना काम निःस्वार्थ रूप से करते जाना । समय बदल रहा है तो रिश्तों की परिभाषा भी तो बदलनी चाहिए और स्वरूप भी । ये सारे रिश्ते आपसी प्रेम , सहयोग व विश्वास की माँग करते हैं ।क्यों आप क्या कहते हैं ?
स्वरचित --
डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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