अरुणिमा की कॉलोनी में दो नये परिवार शिफ्ट हुए थे । नये वर्ष की पार्टी में परिचय हुआ था उनसे ..
निमिषा बहुत ही चंचल और बातूनी थी , जल्दी ही सबसे घुलमिल गई ...एक दो मुलाकात में ही सबको अपने रुतबे , ऊँचे खानदान के किस्से , धन - सम्पत्ति के ब्यौरे दे डाली । उसकी साड़ियों , आभूषणों का कलेक्शन चर्चा का विषय बन गया था ...परन्तु दूसरी
रीमा शांत स्वभाव की पर आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थी । उसने कभी अपने बारे में कुछ विशेष नहीं
कहा..कभी - कभार मिलने पर सामान्य बातें ही होती
वह अपने घर और नौकरी में व्यस्त रहती । उसमें
कॉलोनी की औरतों को प्रभावित करने वाली कोई बात नहीं थी ।
कुछ समय बाद अरुणिमा की सास को दिल का दौरा पड़ा तो रीमा ने उसकी बहुत मदद की ..अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद उसका साथ दिया तथा जब वह अस्पताल में रही तो बच्चों के खाने की व्यवस्था भी
की ....जबकि बड़े बोल बोलने वाली निमिषा कहीं नहीं थी । विपरीत परिस्थितियाँ ही हमें व्यक्ति की सही पहचान कराती हैं .. अच्छे लोग अपने बारे में नहीं बोलते ,उनके काम बोलते हैं... अरुणिमा सोच रही थी...इसीलिए कहा गया है थोथा चना बाजे घना ।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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