Sunday, 18 March 2018

चंद बातें...खुद से

देह को उम्र की मर्यादाएँ निभाने दो...
दिल को बचपन की गलियों में खो जाने दो ।
दौड़ - भाग  तो रोज करते ही हो...
किसी दिन नींद की आगोश में सो जाने दो ।
जिम्मेदारियाँ  सदा निभानी तो हैं...
एकाध दिन बेलौस ,बेपरवाह हो जाने दो ।
छतरी लेकर तो रोज निकलते हो...
किसी दिन बारिशों में खुद को भीग जाने दो ।
दूसरों को सदा खुश करते आये...
किसी दिन स्वयं  को भी मुस्कुराने दो ।
तमन्नाएं पूरी करने में बिता दी उम्र...
कुछ शिकायतें करने के  भी बहाने दो ।
हरदम  निगाहें  बन्द कर मत रखो...
उन्हें भी खुशियों के कुछ पल चुराने दो ।
सुनते रहे सदा दूसरों के मन की...
चलो  जरा  मन को अपनी सुनाने दो ।
बन्दिशों में बाँधकर रखो न  खुद को...
खुलकर होठों को गीत गुनगुनाने दो  ।
कब से आकर ठहरी  है मुस्कान...
चलो आज उसे  फिर खिलखिलाने दो ।
भूल भी जाओ दुनिया के रस्मो- रिवाज..
एक दिन तो खुद को खुद में समाने दो ।
वक्त की शाख से टूट गये जो लम्हें ...
कभी  उन्हें  मुट्ठी में भर लाने दो ।
कई जख्म पुराने जो खुले छोड़ रखे...
चलो , भूलकर उन्हें प्यार से भर जाने दो ।
परखना सीख लिया तुमने लोगों को...
अब खुद की खुद से पहचान कराने दो ।

स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़ 😝

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