सिधवा मइनखे पाय के , जम्मो झन गुर्राथे ।
पीयर परे पातर ल , रुख तको झर्राथे ।।
अपन उपर भरोसा राख , अडिग रहि अपन सोच मा ।
पहार ह अडिग रइथे , ढेला पथरा नन्दी म बोहाथे ।।
धीर ल धरे रहा ,जम्मो बात ह बनही ।
मौसम के आएच ले , रुख ह फुलही फरही ।।
अपन करम ल करत रहा , जिनगी ह बदलही ।
मेहनत के तलाव मा , खुसी के कंवल ह फुलही ।।
ठूँठवा असन झन अड़े रहा ,फरे रुख सही झुक ।
लबरा मन ला जान दे , साधुजन बर रुक ।।
रूप रंग म झन मोहा , मन भीतरी ल छू ।
मीठ मीठ गप अउ करू करू थू ।।
अपनेच ऊपर भरोसा राख , कोनो काम नइ आवे ।
धन - दौलत के भंडार ह मौत ल रोक नइ पावे ।।
झन कर गरब रूप -धन के ,कुछु संग नई जावे ।
कतको बड़हर मनखे जुच्छा हाथ हलावे ।।
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Friday, 30 March 2018
छत्तीसगढी दोहे
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