Tuesday, 6 March 2018

मया दया ( लघुकथा )

थोरकिन घुचबे का बेटा..बस म चढ़ के एक झिन डोकरी दाई ह सीट म बइठे टुरा ल किहिस । ओ हा मुंह ल इति ओती करे लागिस फेर ओला जगहा नइ दिस..बपुरी दाई हर  ..सियान  सरीर , तेमा जर ले उठे राहय खड़े नई होय सकिस ..सीट के बीच म भुइया म बइठ गे । दुसर गांव म बस ह रुकिस त अब्बड़ खबसूरत मोटियारी टूरी हर चढिस... ए ददा , दु तीन झन टुरा मन खड़े होगे.. तै एमेर बइठ जा किहि के । डोकरी दाई ल अब्बड़ रिस लागिस..बखानहु कहिते रिहिस के ..ओ नोनी हर ओखर हाथ ल धर के ओला उठाइस अउ एक ठन सीट म बइठार दिस । जुग - जुग जी नोनी ...कइके अब्बड़ असीस दिस ओला अउ  ओ
टुरा  कती निहार के किहिस  , एखरे आय के अगोरा म
बइठे रहे का बाबू .. डोकरी  बर तोर मन म मया दया न इ आइस ...मया दया ह तको आदमी देख देख के आथे ...छोकरी ल देखके आइस ..ले कहिं नइ होय , कोनो ल होय  अपन सीट ल त देय ...तहूं जियत रही बेटा ...ओ टुरा हर  लाज के मारे   अपन  आँखि ल नई उठाय सकिस ।

स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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