चीखकर हर बात पर मचाते बवाल हैं ,
बैठ कर खामोश वो उठाते सवाल हैं ।
मजे लेना हँसकर दूसरों की मुसीबतों पर ,
बात अपने ऊपर आई तो हाल बेहाल हैं ।
बेगैरत रहे उम्र भर बैठे थे हाथ बाँध कर ,
इज्जत पे बात ठहरी तो दिखाते कमाल हैं ।
खून नहीं मजहबपरस्ती दौड़ने लगी शायद ,
बात - बात पर रगों में आते उबाल हैं ।
आये हैं वो गिरकर शोहरत की बुलन्दी से 'दीक्षा'
लड़खड़ाते कदम अब रखते सम्भाल हैं ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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