Friday, 14 June 2019

ग़ज़ल

चीखकर हर बात पर मचाते बवाल हैं ,
बैठ कर खामोश वो उठाते सवाल  हैं ।

मजे लेना हँसकर दूसरों की मुसीबतों पर ,
बात अपने ऊपर आई तो हाल बेहाल हैं ।

बेगैरत  रहे उम्र भर बैठे  थे हाथ बाँध कर  ,
इज्जत पे बात ठहरी तो दिखाते कमाल  हैं ।

खून नहीं मजहबपरस्ती दौड़ने लगी शायद ,
बात - बात पर रगों में  आते उबाल  हैं ।

आये हैं वो गिरकर शोहरत की बुलन्दी से 'दीक्षा'
लड़खड़ाते कदम अब रखते सम्भाल  हैं ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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