न जाने क्या लिखा है ,
इन हाथों की लकीरों में ।
जो चाहा मिल न पाया ,
जाने क्या है तकदीरों में ।
प्रयास अनवरत करके भी,
सामने रह कर मंजिल न मिली ।
सजाए सुर - साज सभी ,
फिर भी कोई महफ़िल न मिली ।
मेहनतकश इन हाथों ने ,
बदली है तकदीर अपनी ।
जहाँ भाग्य ने साथ न दिया ,
काम आई तदबीर अपनी ।
सुलझा लें ताने - बाने ,
किस्मत की लकीरों के ।
भर लो उजाले जीवन में ,
चलो उस पार अंधेरों के ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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