Sunday, 23 June 2019

हाथों की लकीरें

न जाने क्या लिखा है ,
इन हाथों की लकीरों में ।
जो चाहा मिल न पाया ,
जाने क्या  है तकदीरों में ।

प्रयास अनवरत करके भी,
सामने रह कर मंजिल न मिली ।
सजाए सुर - साज सभी ,
फिर भी कोई महफ़िल न मिली ।

मेहनतकश इन हाथों ने ,
बदली है तकदीर अपनी ।
जहाँ भाग्य ने साथ न दिया ,
काम आई तदबीर अपनी ।

सुलझा लें  ताने - बाने  ,
किस्मत की लकीरों के ।
भर लो उजाले जीवन में ,
चलो उस पार अंधेरों के ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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