Sunday, 30 June 2019

प्रेम - बन्धन

तू जब से मेरे जीवन में आया ,
मन में प्यार ही प्यार समाया ।
अपना सब कुछ वारुं तुझपे ,
दिया तुझे वो जो भी पाया ।
अपनी हर थाली का भोजन ,
तुझे खिलाकर ही खुद खाया ।
मैं हूँ तेरी बड़ी बहन  पर ,
मुझमें  माँ का रूप समाया ।
तू  है मेरी आँखों का तारा ,
तुझसे जीवन में उजास छाया ।
साथ रहें हम हर पल , हर दम ,
पड़े न कोई दुःख का साया ।
एक पेड़ की हम दो शाखें ,
एक आँगन ने हमें खिलाया ।
भाई - बहन का रिश्ता पावन ,
प्रेम - बन्धन ने अटूट बनाया ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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