साथ जिसके रहने से दूर हो जाती दुश्वारी ,
जाति ,धर्म के भेद से ऊपर तेरी मेरी यारी ।
क्या तेरा क्या मेरा ,बेझिझक थी साझेदारी ,
तन दो पर मन एक थे ,काहे की हिस्सेदारी ।
दोनों फक्कड़ मदमस्त , दिखावे की न बीमारी ,
जीवन संघर्ष एक था ,न सीखी दुनियादारी ।
सुविधा न थी ,पर फिक्र थी एक दूजे की भारी ,
असफलता व दुःख में , जाग के काटी रात सारी ।
उम्मीद की किरण बनकर आई दोस्ती हमारी ,
हाथ थामे एक- दूसरे का , सफर रहे यह जारी ।
सफल होकर भी दूर न होंगे , है यह जिम्मेदारी ,
राग - द्वेष , अहंकार से ऊपर तेरी मेरी यारी ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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