विषय - # किताबें
तुम बिन अधूरा है ,
जिंदगी का सफर...
रेल की यात्राओं से प्रारम्भ
तुम्हारा साथ ..
अब जिंदगी की यात्रा में
शामिल है
मेरे आस - पास ही घूमते हैं ,
तुम्हारे किरदार
तुम्हारी दुनिया में
मैं खो जाती हूँ
कभी रोती कभी मुस्कुराती हूँ
जीवंत हो उठते हो तुम
मेरी दुनिया में
मेरी तनहाई , तनाव,
सुख - दुःख के साथी
बन जाते कभी प्रेरणा
दे जाते दिलासा...
लौटा लाते विश्वास ।
बचाया है कई बार मुझे
टूटने , बिखरने से
लगने लगे हो तुम
बिल्कुल अपने से ।
विविध , वृहद है तुम्हारी दुनिया
असीमित , अनगिनत
विचरण करते रहना चाहती हूँ
इनमें जब तक है साँस ।
किताबें रहना तुम ,
हमेशा मेरे साथ ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment