अपने तसव्वुर में तेरी तस्वीर बसाये रखा ,
यादों को तेरी अपने सीने में दबाये रखा ।
ठहर जाती है शबनम ज्यों कलियों पर ,
अश्कों को नजरों में यूँ छुपाये रखा ।
राह - ए - जिंदगानी को करती रहे रोशन ,
वफाओं से इश्क - ए - शमा जलाये रखा ।
कभी थे मुसाफ़िर हम एक राह के ,
जुदा होकर भी आँखों में बिठाये रखा ।
बेपर्दा न हो जाये मोहब्बत अपनी ,
खामोश रहकर आबरू बचाये रखा ।
आँधियों , धूप से सूख न जाये शज़र ,
एहसासों की नमी को बनाये रखा ।
जी ली इक उम्र महक उठी जिंदगी' दीक्षा ' ,
प्यार भरे इन लम्हों को सजाये रखा ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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