प्रचंड गर्मी के बाद मौसम की पहली बारिश बेहद सुकून दे गई थी परंतु बाजार गये श्रीकांत को एक दुकान के नीचे शरण लेनी पड़ी । वहीं कुछ बच्चे बारिश की खुशी में नाच रहे थे और छप - छप कर खेल रहे थे ।
श्रीकांत को बेटी तन्वी याद आ गई थी ..वह भी बारिश के जी भर मजे लेती । अपनी हथेलियों में बारिश का पानी भरकर पापा की ओर छिड़क देती और उनकी प्रतिक्रिया देख खुश हो जाती । कागज की नाव बनाकर
छोटे गड्ढों में तैराती और पापा को अपनी नाव लेने दौड़ाती ...अपने हर क्रियाकलाप में पापा को साथ लेने वाली उसी बेटी से नाराज चल रहे थे श्रीकांत क्योंकि उसने अपनी मर्जी से सौरभ से शादी कर ली थी । पिता की अनुमति लेने के लिए भी नहीं रुकी थी । आज बच्चों के खेल ने उन्हें सारी शिकवे - शिकायतें भुला दी थी और प्यारी बेटी की याद दिला दी थी...तुरन्त फोन कर तन्वी से बात कर लिया था उन्होंने ..उसकी आवाज में खुशी की तरंग महसूस कर रहे थे वे । बारिश थम चुकी थी पर वे अपने साथ उसका एक टुकड़ा ले आये थे अपनी बेटी के बचपन वाला ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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