Wednesday, 19 June 2019

मिट्टी की खुशबू ( लघुकथा )

         *मिट्टी की खुशबू* (लघुकथा )

         काम माँगने आये उस लड़के को देखकर संदीप को अपना गाँव , अपना बचपन और उनसे जुड़ी हर वो बात याद आ गई थी जो जीवन की आपाधापी में वे भुला बैठे थे । साधारण से कपड़े और चेहरे में  मासूमियत , वह बातचीत में भी सीधा सा लगा था ...संदीप ने तुरंत उसे काम पर रख लिया था । वह भी तो एक दिन ऐसे ही चला आया था गाँव से.. काम तलाशने । एक अदद डिग्री , निश्छल मन और परिश्रम करने की जिजीविषा बस यही साथ लेकर निकला था घर से । किसी ने उसके भीतर  अपने आप को ढूँढा था और उसे मौका दिया । अब उसकी बारी है ...शायद माली दिन भर के सूखे पौधों में पानी दे रहा था... मिट्टी की सोंधी महक उसके तन - मन को सुवासित कर गई थी ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़ 

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