रदीफ़ - देखता रहा
अनुराग से भरा मन देखता रहा ,
मैं फूलों से भरा चमन देखता रहा ।
तारे टूटकर जमीं पर आ गये ,
मैं रात भर स्याह गगन देखता रहा ।
दुनिया ने उसे हारते ही देखा ,
मैं उसके जीत की लगन देखता रहा ।
ठूँठ देखकर नजर फेर लिया ,
मैं काष्ठ में छुपा अगन देखता रहा ।
लोग तरक्की के ख्वाब बुनते रहे "दीक्षा "
मैं ख्वाब में भी अपना वतन देखता रहा ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग छत्तीसगढ़
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