Friday, 17 January 2020

ग़ज़ल

काफ़िया - अन
रदीफ़ - देखता रहा

अनुराग से भरा मन देखता रहा  ,
मैं फूलों से भरा चमन देखता  रहा ।

तारे  टूटकर जमीं पर आ गये ,
मैं रात भर स्याह गगन देखता रहा ।

दुनिया ने उसे हारते ही देखा ,
मैं उसके जीत की लगन देखता रहा ।

ठूँठ देखकर  नजर फेर लिया ,
मैं काष्ठ में छुपा अगन देखता रहा ।

लोग तरक्की के ख्वाब बुनते रहे "दीक्षा "
मैं ख्वाब में भी अपना वतन देखता रहा ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग  छत्तीसगढ़













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