Friday, 3 January 2020

ग़ज़ल

ग़ज़ल
काफ़िया (तुकांत ) - अता
रदीफ़ ( पदांत ) - रहा

राह -ए -जिंदगानी में चलता रहा ,
दरिया की रवानी में बहता रहा ।

रख लिया जो  कुछ भी मुझको मिला ,
लोग कहते रहे मैं ही सुनता रहा ।

सरे - राह  बाधाएँ आती रहीं ,
मंजिलों की तरफ़ मैं बढ़ता रहा ।

वो नश्तर सीने में चुभोते रहे ,
मैं चुप रहकर सब दर्द सहता रहा ।

बनकर अपना मुझे वो छलते रहे ,
सब सच जानकर भी मैं हँसता रहा ।

फूल ही चुन लिये खार रहने दिया ,
रकीबों से मैं अपने लड़ता रहा ।

"दीक्षा" उम्मीद का दामन थामे रखा ,
वो गिराते रहे मैं सम्भलता रहा ।

स्वरचित -
डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़


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