पदांत - रहा
अम्बर में घना अंधेरा छा रहा
लगता है सुबह का सूरज आ रहा
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गम न कर उस वक्त का जो बीत गया
व्यर्थ ही इस बात पर पछता रहा ।
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जागना पड़ता है उजालों के लिए
उनींदी आँखों में ख्वाब सजा रहा ।
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ढह जायेंगे आँधियों के झोंके से
रेतों के महल तू जो बना रहा ।
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कर देता दूर तक राहों को रोशन
एक दीप जो अंधेरे में जला रहा
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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