1 . *भेड़ें* ( लघुकथा )
" सत्ताधारी बदल गये हैं पर जनता की समस्याएं अब भी जस की तस हैं । रिश्वतखोर अधिकारी मालामाल हैं गरीब और कंगाल हो गया है "- एक व्यक्ति ने कहा ।" हाँ यार ! महंगाई और भ्रष्टाचार है कि कम होने का नाम ही नहीं ले रहा, इसमें पिसता कौन है ? सिर्फ जनता " -- दूसरे ने कहा ।
अरे ! यही तो सच्चाई है , " खाल तो भेड़ों के शरीर से ही खींची जाती है , खींची जाती रहेगी ; गड़रिया कोई भी हो उसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला । राजनीति का विद्रूप चेहरा हँसने लगा था ।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
2. *आँचल* (लघुकथा)
पूरा मोहल्ला उसे बिलखते देख रहा था... राधा के पति एक लंबी बीमारी के बाद चल बसे थे....दो छोटे बच्चों की जिम्मेदारी उसके सिर पर आ गई थी । न माँ - पिता , न कोई रिश्तेदार.... असहाय महसूस कर रही थी वह अपने - आपको । कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह अब क्या करेगी , कैसे पालेगी बच्चों को... सोलह बरस में शादी हो गई थी , आठवीं पास को काम भी क्या मिलेगा... मजदूरी या कहीं झाड़ू - पोंछा ही करना पड़ेगा । लोगों ने मिलकर उसके पति का क्रियाकर्म कर दिया पर जीवितों का पेट भरने के लिए सब दुःख भूलकर उसे कर्म करना पड़ेगा ।वह निकल पड़ी थी दोनों बच्चों को लेकर ...आसमान में काले मेघ छाये थे...मुसीबतों की तरह बूूँदें भी बरसने लगीं थीं..बच्चों के सिर पर अपनी साड़ी का आँचल तान दिया था उसने....ममता की यह छाँव सभी बारिशों पर भारी थी ।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
3 . *नुस्खा* (लघुकथा )
शाम को घूमने निकले श्रीवास्तव जी का मन उदास और कदम शिथिल थे । पत्नी के न होने की कमी आज बेइंतहा महसूस हो रही थी । बेटे - बहू पर बहुत अधिक निर्भर कभी नहीं हुए वो बल्कि अपनी तरफ से उन्हें स्वतंत्र ही रखा , रिश्तों में संतुलन बनाने की कोशिश की । आज एक सामान्य प्रश्न के जवाब में बहू झल्ला पड़ी थी , पहली बार बेरुखी से पेश आई थी । बस वही बातें उन्हें व्यथित कर रही थीं । पार्क में बैठकर बहुत देर तक सोचते रहे , बहू नौकरी व घर की जिम्मेदारी में संतुलन बनाये रखती है , बच्चों की देखभाल करती है हो सकता है आज उसकी तबीयत ठीक न हो या ऑफिस में कुछ गलत होने पर उसका मूड खराब हो । इस सोच ने उनका मन हल्का कर दिया और लौटते वक्त वह उसके लिए पानीपुरी पैक करवा कर ले आये थे । बहू की आँखें खुशी से चमक उठी थी पानीपुरी के तीखे स्वाद ने ऑंखों के साथ दिलों में नमी ला दी थी " बाबूजी ! मैंने किसी और बात का गुस्सा आप पर उतार दिया था आप मुझे माफ़ कर देंगे न । " गुस्से का इलाज सिर्फ प्यार ही हो सकता है , श्रीवास्तव जी का नुस्खा काम कर गया था ।
डॉ. दीक्षा चौबे
4 . *शिक्षादान* (लघुकथा )
शादी के बाद रुचि को पति के साथ मुंबई आना पड़ा । उसे अपनी चार वर्ष की नौकरी छोड़नी पड़ी , यह बात उसे बहुत पीड़ा दे रही थी । पति के ऑफिस चले जाने के बाद वह बहुत बोर होती , पहले उसकी कितनी व्यस्त दिनचर्या रहती थी । एक दिन उसके पड़ोस में रहने वाली चाची अपनी बेटी प्रिया को लेकर आई जिसे अपनी पढ़ाई में कुछ समस्या आ रही थी । रुचि ने उसे कुछ दिन पढ़ाया , प्रिया को उसके पढ़ाने की शैली पसंद आई और उसने आगे भी पढ़ाने के लिए रुचि से निवेदन किया । प्रिया की दो - तीन सहेलियाँ भी पढ़ने आने लगी थीं । रुचि को अपनी शिक्षा सार्थक लगने लगी थी । शिक्षित होने की अंतिम परिणति सिर्फ नौकरी ही क्यों ? थोड़ा ही सही पर समाज को वह अपना योगदान तो दे रही थी । शिक्षादान करके उसे अत्यंत सन्तुष्टि और आनन्द की प्राप्ति हो रही थी ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
5. *मद्धिम आँच* (लघुकथा )
आज सुबह से आँचल महसूस कर रही थी कि सासु माँ कुछ नाराज सी लग रही हैं । पति आशीष की ओर देखकर इशारों में पूछा - "बात क्या है ?" प्रत्युत्तर में उसने भी कंधे उचका दिये शायद इस बार उन्हें माँ से मिलने आने में देर हो गई थी । आँचल ने बात शुरू की - " मम्मी जी आपके हाथों के बड़े कितने अच्छे लगते हैं , मैंने बनाये थे तो कच्चे- कच्चे से लगे "। " अरे , तूने तेज आँच में जल्दी - जल्दी सेंक दिया होगा । चल आज दाल भिगा , तुझे बड़े बनाना सिखाती हूँ । " और शाम को आशीष सास - बहू दोनों को बातें करते हुए देख रहा था .....चूल्हे की मद्धिम आँच पर बड़े सिंक रहे थे , स्नेह और आदर की मद्धिम आँच में रिश्ते भी .. ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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